क्यों जलधि?
क्यों तुम अपने हमेशा के किनारे से दूर हो !
क्यों इतनी दूर हो मुझसे ?
बहती हुई तुम ये जो गीत गुनगुना रही हो,
मुझे सुनना है ।
ये जो तुम मेरी तरफ आती हुई लगती हो,
और फिर अचानक कहीं गायब हो जाती हो,
और फिर वापिस ऐसा लगता है की,
क्यों इतनी दूर हो मुझसे ?
बहती हुई तुम ये जो गीत गुनगुना रही हो,
मुझे सुनना है ।
ये जो तुम मेरी तरफ आती हुई लगती हो,
और फिर अचानक कहीं गायब हो जाती हो,
और फिर वापिस ऐसा लगता है की,
तुम मेरे बिना रह नहीं सकती ।
और वापिस मेरी ही तरफ आ रही हो,
आ रही हो ना।
इंतज़ार कर रहा हूँ मैं वहीँ पर,
एक किनारा कर रहा है अपनी जलधि का इंतज़ार,
अमावस की एक रात को,
उसी किनारे पर जहाँ हम मिला करते हैं ।
उसी किनारे पर जहाँ हम मिला करते हैं ।
वो देखो! सफ़ेद लिबास में मेरी तरफ आती हुई तुम बेहद खूबसूरत लगती हो ,
लेकिन ओह नहीं, वापिस क्यों चली गयी,
काश मैं आ पता तुम्हारे करीब !
लेकिन फिर मैं वो किनारा नहीं रह पाउँगा जो तुम्हारे लिए हमेशा इंतज़ार करता है।
काश मैं आ पता तुम्हारे करीब !
लेकिन फिर मैं वो किनारा नहीं रह पाउँगा जो तुम्हारे लिए हमेशा इंतज़ार करता है।
मैं गहरा नहीं हूँ लेकिन कई इंसानो के गहरे गम मुझे पता है,
लेकिन आज कोई मुझसे अपनी गहराइयां नहीं साझा कर रहा।
तुम मेरे साथ नही होती हो तो मेरा कोई वज़ूद नहीं ।
आजाओ जल्दी जलधि।
क्यों रूठी हो तुम,
ओह अच्छा! याद आया,
हमेशा आने वाला चाँद थोड़ा भी नहीं ला पाया आज अमावस को मैं,
इसलिए मुझसे इतनी दूर हो तुम ।
अफ़सोस है जलधि,
नहीं ला पाया मैं तुम्हारा चाँद,
लेकिन जल्दी ही ला दूंगा,
तुम भी कहा रह सकोगी मुझसे इतनी देर तक दूर,
कल ही आ जाना मेरे पास,
और उसी वक़्त मैं तुम्हें एक टुकड़ा चाँद का ला दूंगा।
कमबख्त ये चाँद भी अजीब है,
कभी पूरा चाँद ला दूँ तो तुम मेरे पास उमड़ उमड़ कर आती हो,
और धीरे धीरे करके एक एक हिस्सा कम होता है,
ओह अच्छा! याद आया,
हमेशा आने वाला चाँद थोड़ा भी नहीं ला पाया आज अमावस को मैं,
इसलिए मुझसे इतनी दूर हो तुम ।
अफ़सोस है जलधि,
नहीं ला पाया मैं तुम्हारा चाँद,
लेकिन जल्दी ही ला दूंगा,
तुम भी कहा रह सकोगी मुझसे इतनी देर तक दूर,
कल ही आ जाना मेरे पास,
और उसी वक़्त मैं तुम्हें एक टुकड़ा चाँद का ला दूंगा।
कमबख्त ये चाँद भी अजीब है,
कभी पूरा चाँद ला दूँ तो तुम मेरे पास उमड़ उमड़ कर आती हो,
और धीरे धीरे करके एक एक हिस्सा कम होता है,
और तुम भी दूर जाती रहती हो,
और सताती हो।
जानती भी हो की कितने सालो से,
जानती भी हो की कितने सालो से,
जतन कर रहा हूँ चाँद लाने का,
लेकिन बड़ा नटखट है ये भी,
लेकिन बड़ा नटखट है ये भी,
तुम्हारी तरह।
सोच रहा हूँ की शुक्रिया ही कह दूँ,
भले तुम्हे मुझसे दूर वो ले जाता है,
लेकिन पास भी वो ही तो लाता है ।
शुक्रिया है तुम्हे ऐ चाँद,
आखिर तुम भी एक कारण हो मेरे अस्तित्व का ।
और ये सूरज,
मुझसे छीन ही लेता है तुम्हें,
लेकिन वापिस भी तो आती हो तुम,
बरसती हो,
एक नए रूप में,
चारो और से बहती हुई,
आती हो मुझसे ही मिलने आखिर में,
ऐसा लगता है की बिछड़ भी जाये एक बार तो क्या,
मिलन निश्चित है,
एक नए रूप में,
चारो और से बहती हुई,
आती हो मुझसे ही मिलने आखिर में,
ऐसा लगता है की बिछड़ भी जाये एक बार तो क्या,
मिलन निश्चित है,
कितना खुश नशीब हूँ न मैं ।
पूर्णिमा आने वाली है,
अपने पूर्ण मिलन का समय,
लेकिन आएगी भी तो केवल एक दिन के लिए।
इतने पास है फिर भी कितने दूर है,
या कितने दूर है फिर भी इतने मन के पास है,
लेकिन आएगी भी तो केवल एक दिन के लिए।
इतने पास है फिर भी कितने दूर है,
या कितने दूर है फिर भी इतने मन के पास है,
इंतज़ार रहेगा मुझे तुम्हारा,
आओगी ना,
चांदनी रात में गुफ्तगू जो करनी है।