वो बाबा - कहानी वाली कविता :
रोज़ जिस सड़क से गुज़रता हूँ
जाने को काम के लिए
बैठे रहते है एक बाबा
अपना कुछ कीमती सामान लिए
कुछ फल, सुखी रोटियां
और साथ में एक कम्बल और कुछ सामान
जिसमे उनका थरमस सबसे कीमती|
नहीं ..शायद रोटिया ज्यादा कीमती होगी ,
उफ़्फ़, मुझे मालूम नहीं ..मेरा पेट भरा रहता है उस वक़्त।
बैठे रहते है सड़क के किनारे फुटपाथ पर ..एक ब्रिज के नीचे
शायद कोई खास जगह होगी
या यूँही कोई जगह जहाँ धुप न पड़े
और बारिश की यादें भी ताज़ा न हो ।
बस अपने पास के अँधेरे के साथ
काट देते है दिन और रात।
हाथ की हथेलियों को खुरचते रहते है एक सुई से
शायद हाथ की लकीरें बदलने की कोशिश में ।
पता नहीं उस व्यस्त सड़क पर
कैसे वो अब तक ज़िंदा है
जहां गाड़ी रुकने का नाम नहीं ले सकती ।
देखा है मैंने एक गाड़ी के रुकने की कोशिश में
पीछे वाले परेशान हो जाते है ।
शायद कुछ पल दफ्तर देरी से पहुंचने का डर लगता है उन्हें भी
मेरी तरह ।
देखा है मैंने उनको
थरमस में से कुछ पीते हुए
क्या वो ठंडा पानी था या ठंडी चाय
या केवल वो कोई गुज़रे वक़्त को वापिस जी रहे थे
जाने किसकी याद आ रही होगी ।
मैं सोचता हूँ की कौन उन्हें
दे जाता है रोज़ ये फल और रोटियां
भला इंसान ही होगा
या कोई ऐसा जिसे दर्द होता होगा बड़ो के साए का न होंने का ।
इस मुफलिसी में भी कोई ताला नहीं लगाते वो
और सो जाते है कभी भी
बेफिक्र और बेपरवाह
या उन्हें ज़माने का पता नहीं की
यदि सामान इक्क्ठा किया है और
सुरक्षा के इंतेज़ामात भी किये
लेकिन फिर भी चैन की नींद नहीं सोना चाहिए ।
लेकिन बाबा ..उन्हें फ़िक्र ही नहीं
सो जाते है ऐसे ही
सामान को लावारिश छोड़ के
शायद ज्यादा ही भरोसा है उन्हें दुनिया वालो पर।
जलन होती है ऐसी नींद देख के
मन पूछता है कौन ज्यादा सुखी है
मैं या बाबा . .??
लेकिन एक दिन
सड़क से गुज़रते हुए
मैं हैरान हो गया
देखा तो बाबा थे ही नहीं
उन्हें वहां नहीं पाकर
मैं क्यों हैरान था
समझ नहीं पाया ।
रोज देखने भर का भी कोई रिश्ता होता होगा
नाम नहीं दिया बस दुनिया वालो ने ।
देखा उस रोज की
कोई नहीं था उनकी जगह
सामान अस्त व्यस्त
एक सेव सड़क पर पहुंच चुकी थी
और कुछ रोटियां फुटपाथ के निचे गिरी थी
ऐसा लगा की बाबा के घर में चोरी हो गयी ।
थरमस ढूंढने की कोशिश की
लेकिन अजीब बात थी वो नहीं दिखा मुझे ।
क्या हुआ ऐसा ..अचानक कहाँ चले गए
सामान ऐसे बिखरा हुआ
दिल ने दुआ की ऊपर वाले से
बाबा को सलामत रखना ..जहां भी हो
और मैं बेचारा सा आगे निकल गया
दफ्तर पहुंचने में देर हो रहा था
और आज तो मालिक भी आने वाले थे ।
अगले दिन तो और भी अचम्भा हुआ
उनकी जगह कोई और शख्स बैठा था
लगभग उसी सामान के साथ
दाढ़ी के बाल अभी काले ही थे
बाबा से छोटा था
लेकिन उनके जैसा ही
जाने उनका बेटा था या रिश्तेदार
लेकिन बाबा कहाँ गए ..
कैसे है ..कहाँ है ..
शायद नए छोटे बाबा ने भगा दिया
या कोई और कही ले गया
लेकिन थरमस साथ क्यों ले गए।
अजीब प्रश्न था और
पूछ भी नहीं सकता ।
शायद कोई याद जुडी होगी
अपनी खुशहाल पुरानी जिंदगी की
जिसमे जीवनसाथी प्यार से चाय थमाती होगी ।
या हो सकता है की बाबा ही अपनी बेटी को कॉफ़ी डाल के देते होंगे
देर रात तक पढ़ने के लिए , जागते रहने के लिए
जो अब दूसरे घर में है ।
या ये भी तो हो सकता है की
उनका बेटा उनकी सेवा करता होगा
और सर्द रात को सोने से पहले
गर्म पानी भर कर रखता होगा ।
लेकिन अब वो नहीं है या वो रिश्ता नहीं
होने को ऐसा भी हो सकता है की
बाबा की माँ ने उन्हें ये थरमस दिया हो
बाकी सामान के साथ दूर गाँव में रहने आने के लिए
बाकी सामान नहीं रहा ..अब केवल थरमस बचा है ।
रिश्ते न रहे या भले
रिश्ते निभाने वाले न रहे
यादें जो रह जाती है किसी थरमस में
उन्हें निकालना नामुमकिन है
समझ ये नहीं आता की
अब थरमस बड़ा है या वो यादें ।
यादो में थरमस है या
थरमस में यादें ।
It's... Amazing Feeling to read it Bro..
ReplyDeleteThanks Brother :)
Delete👌👍
ReplyDeleteIt's... Amazing Feeling to read it Bro..
ReplyDeleteosm
ReplyDeleteHats off. This is awesome.
ReplyDeleteThank you for the encouragement Sir.
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