आज 29 सितम्बर है और मेरा इंटरव्यू है,
नवरात्रि के हिसाब से मैने रंग पहना है,
जिंदगी का नया पन्ना शुरू करने की उमंग,
माँ का आशिर्वाद साथ में,
यही सोच के चल रही हूँ ।
नवरात्रि के हिसाब से मैने रंग पहना है,
जिंदगी का नया पन्ना शुरू करने की उमंग,
माँ का आशिर्वाद साथ में,
यही सोच के चल रही हूँ ।
रेलवे स्टेशन के लिए समय से निकली हूँ मैं घर से,
लेकिन मुंबई का ट्रैफिक कहाँ कुछ समझता है,
एम्बुलेंस को जगह नहीं देता,
मैं तो क्या ही चीज़ हूँ,
बस ट्रैफिक सह रही हूँ ।
स्टेशन पहुँच कर इतनी भीड़ देख पहले ही सहम गयी,
लेकिन मुंबई का ट्रैफिक कहाँ कुछ समझता है,
एम्बुलेंस को जगह नहीं देता,
मैं तो क्या ही चीज़ हूँ,
बस ट्रैफिक सह रही हूँ ।
स्टेशन पहुँच कर इतनी भीड़ देख पहले ही सहम गयी,
इतनी भीड़ में कही पहुंचना भी बड़ी बात है,
Ola uber लंबे रास्तो में अमीरों के खेल है,
सब लोकल से ही जाते हैं,
कोई नहीं, अब मैं भी चढ़ गयी हूँ ।
Indiabulls बिल्डिंग में मेरा इंटरव्यू है,
Ola uber लंबे रास्तो में अमीरों के खेल है,
सब लोकल से ही जाते हैं,
कोई नहीं, अब मैं भी चढ़ गयी हूँ ।
Indiabulls बिल्डिंग में मेरा इंटरव्यू है,
एल्फिंस्टन स्टेशन पर उतरना है,
इतनी तेज बारिश का इस महीने में आना आश्चर्य है ,
लेकिन कई बार आती है और कुछ परेशान भी करती है,
इतनी तेज बारिश का इस महीने में आना आश्चर्य है ,
लेकिन कई बार आती है और कुछ परेशान भी करती है,
यही सोच कर लोकल ट्रेन के धक्के खा रही हूँ।
एल्फिंस्टन स्टेशन पर उतर कर देखा तो
पाया कि ब्रिज पर भीड़ इकट्ठा है
जाने क्यों है, लेकिन फिर भी और लोग इक्कठे हो रहे है,
सबको जाना है काम पर, और मुझे भी,
मैं भी उसी भीड़ का हिस्सा हो गयी।
पाया कि ब्रिज पर भीड़ इकट्ठा है
जाने क्यों है, लेकिन फिर भी और लोग इक्कठे हो रहे है,
सबको जाना है काम पर, और मुझे भी,
मैं भी उसी भीड़ का हिस्सा हो गयी।
लेकिन यह क्या हुआ, यह शोरगुल इतना अचानक,
सब चिल्ला क्यों रहे है,
कोई बढ़ ही नहीं रहा आगे और पीछे से धक्के आ रहे है,
मेरे पास वाले सब चिल्ला रहे हैं।
और अचानक मेरे बगल वाला आदमी साँस न आने के कारण बेहाल हो गया,
पता नहीं उसे उस भीड़ में गिरा दिया गया या खुद गिर गया,
बहरहाल, कोई उसकी जिम्मेदारी लेने को तैयार नहीं है,
लेकिन हैरत है कि लोग उसके गिरने के बाद भी बढ़े ही जा रहे है।
पता नहीं उसे उस भीड़ में गिरा दिया गया या खुद गिर गया,
बहरहाल, कोई उसकी जिम्मेदारी लेने को तैयार नहीं है,
लेकिन हैरत है कि लोग उसके गिरने के बाद भी बढ़े ही जा रहे है।
शायद वो किसी के पांव के नीचे आ गया होगा अब तो,
शायद बेहोश और अब तो मौत के करीब,
कुछ लोग चिल्लाये उसकी मदद के लिए,
जगह बनाने की कोशिश में कुछ और गिर गए शायद,
और यहाँ भगदड़ सी मच गई ।
ये क्या ! मैं भी गिर चुकी हूँ अब,
मुझे लोगों के जूते दिख रहे है,
लोग अपना सामान जो जगह रोके हुए था, फेंक रहे है,
मुझे गिरता हुआ सामान भी दिख रहा है,
मैं महसूस कर पा रही हूँ वो आवाजें
और लोगों का उपेक्षा करते हुए बढ़ना,
कोई मेरे मुँह पर पाँव रख रहा है तो कोई पाँव पर,
किसी को सुध नही है क्योंकि सबको खुद की जान बचानी है,
हवाईजहाज की कुर्सी की पेटी वाली घोषणा सबने ही सुनी हुई है, लग रहा है।
आह!! किसी ने मेरे पेट पर पाँव रखा और मैं चिल्ला पड़ी,
मेरे पास और भी लोग गिरे हुए हैं,
वो भी चिल्ला रहे हैं,
लेकिन अफसोस, अभी, आज सुनने वाला कोई भी नहीं है।
शायद बेहोश और अब तो मौत के करीब,
कुछ लोग चिल्लाये उसकी मदद के लिए,
जगह बनाने की कोशिश में कुछ और गिर गए शायद,
और यहाँ भगदड़ सी मच गई ।
ये क्या ! मैं भी गिर चुकी हूँ अब,
मुझे लोगों के जूते दिख रहे है,
लोग अपना सामान जो जगह रोके हुए था, फेंक रहे है,
मुझे गिरता हुआ सामान भी दिख रहा है,
मैं महसूस कर पा रही हूँ वो आवाजें
और लोगों का उपेक्षा करते हुए बढ़ना,
कोई मेरे मुँह पर पाँव रख रहा है तो कोई पाँव पर,
किसी को सुध नही है क्योंकि सबको खुद की जान बचानी है,
हवाईजहाज की कुर्सी की पेटी वाली घोषणा सबने ही सुनी हुई है, लग रहा है।
आह!! किसी ने मेरे पेट पर पाँव रखा और मैं चिल्ला पड़ी,
मेरे पास और भी लोग गिरे हुए हैं,
वो भी चिल्ला रहे हैं,
लेकिन अफसोस, अभी, आज सुनने वाला कोई भी नहीं है।
मुझे याद आया वो मम्मी का दही खिलाना,
पापा का आशिर्वाद देना,
लेकिन इस वक़्त लग रहा है कि कुछ काम नही आएगा,
मुझे ताकत चाहिए कि मैं खुद उठ सकूँ,
काश आज बारिश या भीड़ देख कर मैं रुक जाती थोड़ा और,
लेकिन इंटरव्यू वाले कितना ही समझते उस बात को।
आज आखिरी दिन शक्ति की माँ दुर्गा को भी याद किया,
लेकिन अब जरा भी ताक़त नहीं लग रही है,
चिल्लाते भागते लोग, और साँस का कुछ पता नहीं,मेरे हाथों को दबाते हुए कोई आगे बढ़ गया,
अभी किसी ने मेरे गर्दन पर पाँव रख दिया,
मुझे बिल्कुल सांस नहीं आ रही है,
क्या इन लोगों के पाँवो को अहसास नहीं होगा कि वो किसके ऊपर हैं,
या शायद उन्हें निकलना है बस इसीलिए वो मुझे नज़रअंदाज़ कर रहे हैं।
समझ नहीं आ रहा किसको गाली दूँ,
इन लोगों को या खुद को,
इस मौसमी बारिश को,
ब्रिज बनाने वालों को,
ब्रिज को जरूरत के हिसाब से न बदलने वालों को,
या पूरे शासन तंत्र को,
आज तक मैंने ही कुछ नहीं किया देश के लिए,
बस यही सोच के मैं ज्यादा सोच नही पाई ।
या पूरे शासन तंत्र को,
आज तक मैंने ही कुछ नहीं किया देश के लिए,
बस यही सोच के मैं ज्यादा सोच नही पाई ।
आह! एक और पाँव मेरे पेट पर,
अब तो लग रहा है जैसे ताबूत में आखिरी कील की जरूरत रह गयी है बस,
कितना दुख भरा है ऐसी मौत का अनुभव,
मेरा चिल्लाना अब मुझे ही नहीं सुन रहा है,
कोई मदद कर भी नहीं सकता,
बस अब ऐसी घुटन नहीं सही जाती,
और ऊपर से ये मुझे जमीन समझते नासमझ लोग,
अँधेरा हो गया है आंखों में, लेकिन अभी तो सुबह ही थी,
हम्म! मेरा आखिरी वक्त आ गया है।
अब मैं साँस नही ले सकती,
मुझे मेरे ऊपर खड़े लोगों का भार भी महसूस नहीं हो रहा,
मैं अब निर्जीव हूँ।
अब तो लग रहा है जैसे ताबूत में आखिरी कील की जरूरत रह गयी है बस,
कितना दुख भरा है ऐसी मौत का अनुभव,
मेरा चिल्लाना अब मुझे ही नहीं सुन रहा है,
कोई मदद कर भी नहीं सकता,
बस अब ऐसी घुटन नहीं सही जाती,
और ऊपर से ये मुझे जमीन समझते नासमझ लोग,
अँधेरा हो गया है आंखों में, लेकिन अभी तो सुबह ही थी,
हम्म! मेरा आखिरी वक्त आ गया है।
अब मैं साँस नही ले सकती,
मुझे मेरे ऊपर खड़े लोगों का भार भी महसूस नहीं हो रहा,
मैं अब निर्जीव हूँ।
मैं मर चुकी हूँ।
अब कोई दर्द नही होगा,
बस यही सोच कर खुश हूँ।
अब कोई दर्द नही होगा,
बस यही सोच कर खुश हूँ।
मैं अब आत्मा हूँ।
मैं अब आज़ाद हूँ।
मैं अब आज़ाद हूँ।
अब आजाद मैं, देख पा रही हूँ कि कितने ही औऱ लोग दब चुके है,
कुछ चिल्ला रहे हैं औऱ कुछ मेरे शरीर की तरह निर्जीव हो गये है,
यह हृदय विदारक दृश्य, कौन रहा होगा इसका कारण;
खैर ये काम तो सबको आता है, अब सब कर ही लेंगे।
कुछ चिल्ला रहे हैं औऱ कुछ मेरे शरीर की तरह निर्जीव हो गये है,
यह हृदय विदारक दृश्य, कौन रहा होगा इसका कारण;
खैर ये काम तो सबको आता है, अब सब कर ही लेंगे।
लोग इक्कठे हो चुके है ब्रिज के नीचे,
कोशिश कर रहे है मदद की, लेकिन व्यर्थ,
मदद की जगह ही नहीं है।
लोगों का चिल्लाना कम हुआ है और जिंदा लोगो की भीड़ कुछ मरे हुवे लोगों की भीड़ में बदल गयी है।
मैं भी इस नई भीड़ का हिस्सा हूँ।
अब केवल कुचले हुए लोग पड़े हैं।
वो वहाँ ऊपर मैं खुद को देख पा रही हूँ,
अच्छी लग रही थी सुबह आईने में तो,
अब तो सूरत ही नहीं पहचान पा रही हूँ।
हमें अलग इक्कठा किया जा रहा है,
जिंदा लोगों में से कुछ रो रहे हैं, कुछ चिल्ला रहे हैं,
किसी ने साथ वाले को खोया तो किसी ने खुद के शरीर को खोया,
नहीं, बस अब मैं और नहीं देख सकती।
कोशिश कर रहे है मदद की, लेकिन व्यर्थ,
मदद की जगह ही नहीं है।
लोगों का चिल्लाना कम हुआ है और जिंदा लोगो की भीड़ कुछ मरे हुवे लोगों की भीड़ में बदल गयी है।
मैं भी इस नई भीड़ का हिस्सा हूँ।
अब केवल कुचले हुए लोग पड़े हैं।
वो वहाँ ऊपर मैं खुद को देख पा रही हूँ,
अच्छी लग रही थी सुबह आईने में तो,
अब तो सूरत ही नहीं पहचान पा रही हूँ।
हमें अलग इक्कठा किया जा रहा है,
जिंदा लोगों में से कुछ रो रहे हैं, कुछ चिल्ला रहे हैं,
किसी ने साथ वाले को खोया तो किसी ने खुद के शरीर को खोया,
नहीं, बस अब मैं और नहीं देख सकती।
अब मैंने इस संसार से मुँह मोड़ लिया है।
मैं सोच रही हूं अब क्या होगा,
कुछ खबरी आएंगे और चिल्लायेंगे,
कुछ मदद वाले आएंगे,
जाँच समितियाँ बिठाई जाएंगी,
5-10 लाख रुपये दिए जाएंगे,
शोक व्यक्त होगा,
नेता कुछ नाटक करेंगे,
और फिर भूला दिए जायेंगे,
इस हद तक कि कोई बड़ा जमीनी बदलाव नही होगा,
यही सब पुराने राम भरोसे ब्रिज,
और वही मानसिकता,
ना कोई कुछ सीखेगा, न बोलेगा,
किस्मत में लिखा था ये सोच के भुला दिए जाएंगे,
देखा है मैंने बहुत बार, ऐसा ही होता है,
सबक सीखते तो ऐसा होना बन्द हो गया होता,
यही चलता आया है यही चलता रहेगा,
बशर्ते जब तक हर घर से या कम से कम हर नेता के घर से ऐसे किसी एक की मौत न हो जाये।
उम्मीद नहीं कि तब तक कुछ होगा भी,
कोई कुछ करना भी चाहे तो उसे किसी का आधार नहीं मिलता,
बस यही भारत है,
मेरे हक़ीक़त का भारत,
चमकता हुआ भारत,
विश्वगुरु भारत,
जहाँ मेरे जैसे इन बीसियों लोगो की जिंदगी की कोई कीमत नहीं है,
और जो अभी यहाँ नहीं है आज, उनके लिए ये केवल हादसा है जो कि होता रहता है,
उम्मीद केवल उनसे है जो मेरे ऊपर पाँव रख कर गए थे जिंदा रहने के लिए और जो जिंदा बच गए ,
उम्मीद है वो कुछ बदलाव का बिगुल बजायेंगे।
सबकी आत्मा शरीर छोड़ के जा रही है,
आज उनको भी उम्मीद से ज्यादा अफसोस होगा,
अब उम्मीद पे उनकी दुनिया कायम नही रहीं।
21 जने और भी मरे है, ऐसे ही सैकड़ो और भी मरेंगे,
उम्मीद है तो किसी और देश में अगले जन्म की,
बस यही सोच कर मैं जा रही हूँ....।
आज उनको भी उम्मीद से ज्यादा अफसोस होगा,
अब उम्मीद पे उनकी दुनिया कायम नही रहीं।
21 जने और भी मरे है, ऐसे ही सैकड़ो और भी मरेंगे,
उम्मीद है तो किसी और देश में अगले जन्म की,
बस यही सोच कर मैं जा रही हूँ....।
झकझोर के रख दिया है मन को,आत्मा को...😢
ReplyDeleteगर्व है तुम पर मेरे बच्चे..😇
अपनी इस संवेदनशीलता को बनाये रखना...लव यू😘❤❤
ये संवेदनशीलता आपने भी सिखाई थी..सृजन करना कहीं न कहीं आपकी भी सीख है। धन्यवाद सिखाने के लिए। प्रणाम🙏
DeleteNo words to explain power of yur words brother...
ReplyDeleteThank-you for understanding the power :)
DeleteNo words to explain power of yur words brother...
ReplyDeleteहादसे में विलुप्त हुई आत्मा की आत्मकथा लिखने के लिए तुम किस गहराई से सवेंदनशील हुए हो यह सोचकर ही रोंगेटे खड़े हो गए है! समस्या के साथ समाधान सोचने की भी तुम्हारी ख़ूबी है! भगवान तुम्हारे ऊपर अपना आशीर्वाद बनाए रखें!
ReplyDeleteधन्यवाद चाचा। ऐसी भावनाये घर में से सीखी जाती है। धन्यवाद सीखाने के लिए। प्रणाम।
DeleteVery nice...
ReplyDeleteशायद इस लेख से घटना की गंभीरता लोग समझे ओर कुछ अच्छा हो। Anil
ReplyDeleteमकसद यही है, कहीं न कहीं कुछ छोटा सा फर्क पड़ेगा, यही इच्छा है।
Deleteशायद इस लेख से घटना की गंभीरता लोग समझे ओर कुछ अच्छा हो। Anil
ReplyDeleteGreat ..hats off
ReplyDeleteबशर्ते जब तक हर घर से या कम से कम हर नेता के घर से किसी एक की मौत न हो जाये।
ReplyDeleteउम्मीद नहीं कि तब तक कुछ होगा भी,
कोई कुछ करना भी चाहे तो उसे किसी का आधार नही मिलता। कटुसत्य
सहमत हूँ।
ReplyDelete