Sunday 31 March 2019

Breaking Stereotype

Last weekend, I happened to go to my hometown in Rajasthan. I with my family were to attend a marriage function 50km from hometown by bus.

To throw a little light, Rajasthan is one of the state where customs and traditions are followed rigorously and is comparatively much conservative to Mumbai where I work. This time, 4 to 5 experiences made me re-think about it.

When I reached home after the 24hr journey, I found the renovation process of home going on as was told to me on phone. Different was the fact that the whole renovation plan and progress was supervised by my mother. Not father, not grandfather but my mother with help of my grandmother. Wow! I praised her in my thoughts. This is cool! Have seen man doing this work wherever I got to see but here it's different. #Proud.

Anyway, I with my grand parents took off to the function and set in a Govt bus. To my next surprise, once the bus departed, conductor for collecting fare was female. She was easily talking to all kind of passengers and with authority, collecting fare. Super cool! Isn't it? Never thought so. Even in Mumbai, conductor/master is a male at least what I have seen. Thought that Rajasthan has left Mumbai behind in this case in the symbol of equality. And add to it that our fare was given by Grandmother which was usually done by me or Grandfather. Well! Seems breaking stereotype is #betterTogether and you need a little push and support from each other.

Things didn't stop just here. The function we were going to attend was a love marriage with family consent. What broke stereotype was the fact that all arrangements were done by Groom and Bridegroom only. Not the parents but son and daughter. Couple with their friends made it happen anyhow and arranged everything themselves. That means bridegroom's girl-friends were also taking care of guests. Everyone seemed to be Breaking Stereotype. Age and gendor wise. #Wow.

After the function, I also went to my paternal uncle's home with Grandparents. Now this time uncle was the one who broke stereotype. He prepared all dishes and served as well. Aunty was there but she was requested specially to stay in room and talk to us. 90% of the kitchen things were done and managed by uncle. Stereotype broken by both Uncle and Aunt. #Great.

One more thing that I noticed in my comparatively conservative hometown this time. There were daughter in place of son; Wife in place of husband, at some Kirana stores. Man! That's really a kind of progress in thoughts of my hometown. Specially the Agarwal/Maheshwari-Baniya community who have always led the society in terms of upgrading social values and thoughts. #Respect.

From leading renovation at home to collecting fare, from managing a marriage to managing kitchen and shops. Great experience.

I was feeling like what has happened suddenly. I am finding break of stereotypes anywhere I could think little deep. And it was not stereotyped example of breaking stereotype such as big posts like lady Doctor or lady police officer.

Don't think that, things done by a lady or someone 30+ only breaks stereotype. Even you can break it simply by taking the role of sweeper for a minute. Even by celebrating your birthday with orphan kids. Even by helping your house maid or mother/wife regularly at home.

It is the change at right place. At small place and in small terms. Because someone said that take care of small things and bigger things will take care of themselves. Because small is beautiful. Because small makes you great. Because its #BetterTogether.

Thursday 14 March 2019

सेहत और मर्ज

जो सेहत में इतनी दूर आते नहीं थे,
चलो, अब वो मिलने आएंगे।

बीमारी में बात की उसने,
चलो, अच्छा है, इसी में खुश हो जाएंगे।

सेहत कहां आराम देती है शरीर को,
चलो, अब दो पल सुकून के मिल जाएंगे।

कई महीने हुए, पड़ोसी नहीं दिखे,
चलो, अब दफ्तर जाते दिख जाएंगे।

सेहत तो पढ़ने नहीं देती साहिब,
चलो, अब उस किताब के पन्ने पढ़े जाएंगे।

बहुत दिन हुए, घर की दीवारों से गुफ्तगू नहीं हुई,
चलो, अब इत्मीनान से कुछ बतियाते जाएंगे।

घर दीवार के उस कोने में रोगन की जरुरत है,
चलो, अब सब दरारों के दीदार हो जाएंगे।

भागते भागते खाना ही नसीब होता था,
चलो, अब दो बार नाश्ते हो जाएंगे।

ख्वाइश थी कुछ शायरी सुनने की,
चलो अब सब शायर सुने जाएंगे।

अरसे से मन की बातें ना निकली थी,
चलो अब सारे शिकवे मिटते जाएंगे।

काफी वक्त से टैगोर की कहानियां देखनी थी,
चलो अब सब खंगाले जाएंगे।

हर शाम, घर की शाम याद आती थी,
चलो, अब बच्चों को आवाज़ से हम बहल जाएंगे।

उम्दा लिखना था कुछ,
चलो, अब कुछ फसाने लिखे जाएंगे।

मर्ज ही तो है, लग जाने दो,
दुरुस्त होना ही है, हो जाएंगे।

फिर भी, बेहद ख्याल रखिए खुद का,
एक बार चले गए तो वापिस नहीं आ पाएंगे।

Sunday 10 March 2019

गुरु महिमा री माला


श्री रामजीलाल कल्याणी द्वारा लिखी गई एवम् राजस्थान साहित्य समिति, बिसाऊ द्वारा प्रकाशित 'गुरु महिमा की माला'।


उक्त रचना को हाल ही में श्री कमल पोद्दार के सानिध्य में श्री मनोज छापरवाल द्वारा सुरीले संगीत से सजाया गया। 

उसे सुनने के लिए यहां जाएं:

'गुरु महिमा की माला' के सभी पद्द यहां प्रस्तुत किए जा रहे हैं:

गुरु और गोविन्द री, रासि एक समान।
गुरु बणायो ज्ञान दे, गोविन्द नै भगवान। १।

गुरु गौरव महिमा घणी, किस बिद करूँ बखाण।
गुरु आगै नत माथ हो, आप खड़्या भगवान। २।

माटी नै पुजवाय दे, कुम्भकार रो ज्ञान।
कण सुमेर पर्वत बने, गुरु री क्रिपा महान। ३।

नर से नारायण बने, बामन बने विराट।
कण नै मण रो रूप दे, गुरु क्रिपा रा ठाठ। ४।

गुरु हिड़दे रो च्यानणौ, गुरु आंख्या री जोत।
गुरु सिमरण सूं सिद्ध सब, कारज पहली पोत। ५।

गुरु श्रद्धा रो देवरो, गुरु शान्ति रो कुंज।
गुरु शिष्यां री ढाल है, गुरु प्रकाश रो पुंज। ६।

गुरु रो मतलब शिखर है, गुरु गौरव री खान।
गुरु श्रद्धालु ही बण्या, जग में पुरुष महान। ७।

पत्थर सूं मूरत गढ़े, जियां मुरतकार।
सद्गुण दे सद्गुरु करै, शिष्यां रो सिणगार। ८।

भारत भूमि पर रयो, गुरु तत्व परधान।
गुरु कृपा सादर मिल्यो, जगतगुरू सम्मान। ९।

गुण गौरव गुरु देव रा, चौतरफो आनन्द।
गुरु कृपा से टूटज्या, जलम जलम रो फंद। १०।

गुरु रा साचा सबद सुण, हिवड़ै उठै हिलोर।
परमानन्द में मगन हो, नाचै मन रौ मोर। ११।

गुरु भगती राखी हिये, मन में गुरु रो ध्यान।
एकलव्य री साधना, पायो जग में मान। १२।

जै थे रस्तै चालस्यो, मन में गुरु रो ध्यान।
थारा कारज सिद्ध सब, करसी श्री भगवान। १३।

गुरु तत्व रो मोल है, सुणल्यो सब संसार।
औतारां नै भी पड़ी, गुरुवर री दरकार। १४।

रामकृष्ण गुरुदेव तो, शिष्य विवेकानंद।
जग भगत चमकाइयो, ज्यूँ तारा बिच चंद। १५।

मिल्यो ज्ञान गुरु री कृपा, होग्यो भ्रम रो नाश।
दयानन्द स्वामी हुआ, मेट्या अन्ध विश्वास। १६। 

मुरतब धरती रो गुरु, गुरु ज्ञान भण्डार।
सब रो हित सब रो भलो, करे प्रेम बौछार।१७।

गुरु बिन ज्ञान मिले नहीं, करलयो लाख उपाय।
गुरु किरपा सूं सुरसती, बैठे हिवडे आय।१८।

गुरु वंदन गुरु नै नमन, शत शत करूं प्रणाम।
मेटो मन री भरमना, धन गुरु पूरण काम।१९।

धन धन सद् गुरुदेव नै, धन धन ब्रह्मप्रकाश।
जांको सुमिरण ध्यान हो, द्वेष बुद्धि रो नाश।२०।

रामदास गुरु री कृपा, वीर शिवा री शान।
छत्रपति रो पद मिल्यो, बाज्या विजय निशान।२१।

गुरु बतावे शिष्य नै, जीवन रो आधार।
गुरु किरपा झंकृत करे, हृदय तंत्र रा तार।२२।

गुरु मूरत मन मोवनी, रूप मधुर मुस्कान।
कृपा दृष्टि सूं देखरया, आप खड्या भगवान।२३।

माता पिता पहला गुरु, जन्म दियो दातार।
धन सत गुरु किरपा करी, जीवन दियो सूवांर।२४।

पर दुःख सूं मन में दुःखी, सद् गुरु दिन दयाल।
दुनिया रा दुःख मेट कर, करे सदा प्रति पाल।२५।

गुरु ज्ञान रो रूप है, दया रूप भगवान।
छल छिद्री कपटी मिनख, नहीं सके पहचान।२६।

मक्खन सो कंवलो हृदय, ब्रज समान कठोर।
कदे डरावे तो कदे, पुचकरां रो दोर।२७।

गुरु परोपकारी बड़ा, निस्वारथ रो भाव।
सब रो हित सब रो भलो, सोचै मधुर सुभाव।२८।

बैठया जिक्की डाल पर, काट कर रया नाश।
गुरु रूप पत्नी मिली, बणग्या कालिदास।२९।

रामचरित तुलसी लिख्यो, पायो जग सम्मान।
रत्नावली गुरु मिली, करियो अमर महान।३०।

गुरु री मिलज्या प्रेरणा, खुलज्या अन्तर पाट।
गुरु श्रद्धा रो देवरो, गुरु गंगा रो घाट।३१।

गुरु पूजन सूं शुद्ध मन, शुद्ध भाव सुविचार।
चित्त शांति अनुभव करे, गावे मेघ मल्हार।३२।

गुरु ज्ञान री जोत सूं, दीपै यो संसार।
धर्म अर्थ'र काम मोक्ष, सुलभ पदराथ च्यार।३३।

गुण ग्राही ही बण सकै, गुरु रो शिष्य महान।
बिना श्रद्धा नीं मिल सकै, जीवन में भगवान।३४।

श्रद्धा अर विश्वास री, सीढ़ी चढ़ गुणवान
गुरु तत्व में जा मिले, गुरु रूप भगवान।३५।

माता पिता ममता नहीं, कंठ बिना नी गान।
बिन विश्वास भगति नहीं, गुरु बिन मिले न ज्ञान।३६।

धन गुरु सद् गुरु शब्द सूं, मिले नुवी पहचान।
गुरु भाव रो च्यानणौ, करे जगत कल्याण।३७।

गुरु सूं रखै आंतरो, विषय वासना पास।
तन मन मैलो होयज्या, सद्बुद्धि रो नाश।३८।

गुरु ताएं श्रद्धा नहीं, नहीं गयो अज्ञान।
अज्ञानी रो कद हुवे, ई जग में सम्मान।३९।

गुरु री क्रिपा सुहावनी, ज्यूं बसंत ऋतुराज।
नव चेतनता प्रेरणा, देवे गुरु महाराज।४०।

गुरु तरुवर री छांह है, गुरु सरवर रो नीर।
गुरु ममता री मूरती, हरै ताप भव पीर।४१।

मिटे दिवालो ज्ञान रो, गुरवां रै परसाद।
गुरु किरपा सूं पूर्ण हो, जलम जलम री साध।४२।

गुरु देव किरपा करो, मेटो तम अज्ञान।
चालै मेरी लेखनी, रवै समाज हित ध्यान।४३।

गुरु मय यो संसार है, संध्या अर परभात।
गुरु मय सूरज चांद है, गुरु मय दिन और रात।४४।

गुरु सुंगध फूलां बसै, गुरु तितली में रंग।
भव दुःख भंजन है सदा, गुरु किरपा रो संग।४५।

गुरु कुदरत रो रूप है, परवत और पठार।
अगनी री गर्मी गुरु, गुरु ठंडी जलधार।४६।

गुरु सुधारें शिष्य नै, लोक और परलोक।
खुशियां ही खुशियां सदा, कदे न आवै शोक।४७।

गुरु ब्रह्मा विष्णु गुरु, गुरु महेश भगवान।
ब्रह्मा विष्णु महेश भी, धरे गुरु रो ध्यान।४८।

अमर प्रेम रा साक्षी, चन्दो और चकोर।
साचा शिष्य जग में फिरे, ध्यान गुरु री और।४९।

गुरु ध्यान गुरु वन्दना, गुरु पूजा सम्मान।
धन गुरु सद्गुरू जाप सूं, हो ज्यावे कल्याण।५०।

राजा दशरथ जद करयो, गुरु वशिष्ठ रो ध्यान।
बाके आंगन खेलिया, श्री राम भगवान।५१।

ज्यू बिरछां री छांव में, करे पखेरू वास।
वरद हस्त गुरु देव रो, बढ़े शिष्य विश्वास।५२।

संदीपन गुरु री कृपा, कृष्ण सुदामा मीत।
गुरु सेवा गुरु आश्रम, गुरु भाव री जीत।५३।

उपमन्यु अरुणी हुया, शिष्य धौम्य गुरु ज्ञान।
गुरु भक्ति गुरु री कृपा, पायो जग में मान।५४।

करमा रा बंधन कसै, हुवै जीव बेहाल।
भव बंधन काटे गुरु, गुरु री कृपा कमाल।५५।

गंगा गीता गायत्री, गाय और गणराज।
गुरु देव सर्वोपरी, सबके सिर रा ताज।५६।

जन गण मन री भावना, भारत वर्ष महान।
गुरु तत्व है देश री, सुंदर शुद्ध पिछां।५७।

गुरुवर री महिमा घणी, किस विद करूं बखान।
गुरुदेव रो आसरो, मैं अबोध अज्ञान।५८।

गुरु स्थान ऊंचो घनो, आवै कोनी हाथ।
भक्ति भाव रस धार कर, नित्य नवावूं माथ।५९।

हिवडे होज्या च्याननो, गुरु मणि अनमोल।
बिना समर्पण ना मिले, अन्तर रा पट खोल।६०।

गुरु वशिष्ठ ज्ञानी घणा, दशरथ शिष्य महान।
गुरु कृपा सूं खॆलिया, आंगण श्री भगवान।६१।

बालमिकी गुरु आश्रम, लव कुश पायो ज्ञान।
अश्वमेघ हय राम रो, रोक्यो खैंच कमान।६२।

चमकै च्यारूं कूंट में, गुरु जस चांद समान।
शिष्य आरव्यां चकोर सम, करै मधुर रस पान।६३।

जग माया ठगनी करै, साधक मन भटकाव।
गुरु कृपा सूं भव तरै, या जीवन री न्याव।६४।

मिनखै रै मन में रवै, कुविचार सुविचार।
कुविचार नै दूर कर, गुरु करै उपकार।६५।

गुरु रो मुख है चंद्रमा, शिष्य चकोर समान।
आठ पहर चौबीस घड़ी, गुरु चरना में ध्यान।६६।

पीठ थपथपावै गुरु, दे पुरो हिमलास।
सीख शरीरा बापरै, होवै पूरी आस।६७।

गुरु री सेवा सूं मिले, मेवां रो भण्डार।
माता पिता पहला गुरु, जानै सो संसार।६८।

आंख्या में गुरु मूरती, मन में गुरू विश्वास
हिरदे गुरु आराधना, सफल सभी परयास।६९।

मन दर्पण नै साफ कर, देखो गुरु भगवान।
जद मलीनता दूर हो, आवै स्वर्ण विहान।७०।

ब्रह्मा विष्णु महेश गुरु, परम प्रभु औतार।
बारम्बार प्रणाम है, अरज करो स्वीकार।७१।

रिश्तों जोड़ें ज्ञान सूं, गुरु शिल्पी बेजोड़।
मैं चरणा री मोचड़ी, गुरु मेरो सिरमोर।७२।

यो संसार अजब गजब, भरया ज्ञान भण्डार।
बिना गुरु कृपा मिलै नहीं, बंद रवै सब द्वार।७३।

जग जाणं बी मिनख नै, जिण पर गुरु री महर।
इमरत प्यावे शिष्य नै, पान करै खुद जहर।७४।

मन चंचल डगमग हुयो, माथे मांय तनाव।
गुरुजी दुविधा मेट कर, पार लगाओ न्याव।७५।

गुरु रो सुमिरण ध्यावना, राखूं हिरदे सार।
मेटो मन री भरमना, घनो घनो आभार।७६।

गुरु बिन हुवे ना चयाणनो, मिटे न मन री चूंद।
ज्ञान सरोवर मायं सूं, मिले नहीं इक बूंद।७७।

माता पिता नै नमन है, पैदा करयो शरीर।
दीनी घूंटी ज्ञान री, गुरु देव मति धीर।७८।

पुष्प जिसा कोमल गुरु, सागर सा गम्भीर।
गंगा जिसा पवित्र है, धरती मां सा धीर।७९।

गुरुवर दीपै दीप ज्यू, दूर करै अंधियार।
गुरु ज्योति री ज्योत सूं, जगमग सो संसार।७०।

गुरु पूजा ईश्वर विमल, ऊंची साख प्रधान।
गुरुता सै गुरु शिखर तक, गुरु गौरव गुण ज्ञान।८१।

हीवडे रा आंधा हुवे, मन में हो कुविचार।
सद्गुरू जी मिलता परां, हाेज्या बेड़ा पार।८२।

गुरु हिरदे सूं बह रही, जन मंगल री धार।
नफ़रत गुरु समेट ले, बांटे सब नै प्यार।८३।

सत गुरुआँ री शरण है, सभी सुखां री खान।
धन गुरु सत गुरू पूज्य गुरु, जय गुरु देव महान।८४।

माटी री मूरत बणा, करयो गुरु रो ध्यान।
एकलव्य री भावना, गुरु दियो वरदान।८५।

गुरु भगतां नै नमन है, गुरु भगतां रो मोल।
गुरु भक्ति ऊंची घणी, गुरु भक्ति अमोल।८६।

है कबीर मीरां अठे, भगत होया रैदास।
गुरु भक्ति राखी हिये, गुरु चरनां विश्वास।८७।

हीये उचाट'र खलबली, डगमग तन री न्याव।
गुरु दर्शन सूं शान्त सब, इसडो गुरु दरसाव।८८।

गुरु गरीब रो दास है, भुखै रो आधार।
प्यासै रो पाणी गुरु, धन धन लख दातार।८९।

गुरु री किरपा सू हुवे, चौतरफा जस नाम।
सूत्यो जागे भाग अर, सरै अणसरया काम।९०।

होवे मिनख उतावलो, तन मन हुवे अधीर।
गुरु किरपा सूं दूर सब, दैहिक भौतिक पीर।९१।

गुरु पून्यू रो चांद है, गुरु है मेघ मल्हार।
गुरु कुदरत रो रूप है, गुरु गंगा री धार।९२।

गुरु दिवाली रो दियो, होली री झल सांच।
रख पून्यूं री रखड़ी, कदे न आवै आंच।९३।

जीव जगत में मानखो, सब सूं बुद्धिमान।
बिना गुरु बुद्धि कठे, रैवै पसू समान।९४।

विघ्न हरण मंगल करण, गुरु गणेश समान।
अन्तर जामी गुरु करै, अन्तहकरण पीछाण।९५।

जद जद होवे जगत में, गुरु तत्व रो ह्यास।
कोपै कुदरत सृष्टि में, होवे घनो विनाश।९६।

गुरु भाव गुरूता घणी, गुरु आकर्षण जाण।
गगन गिरा गूंजे घणी, गावै वेद पुराण।९७।

जानो, समझो, सोचल्यो, मन में करो विचार।
गुरु आकर्षण जगत में, अखिल विश्व आधार।९८।

रीढ़ खम्भ है देश रो, गुरु रो ग्यान महान।
गैलो गुरु दिखा दियो, जाण्यो सकल जहान।९९।

अलगोजो गावै गुरु, मुलकै मरुधर रेत।
रमझोलां राजी हुया, कुवा बावड़ी खेत।१००।

गुरु घन सिख - मन मोर सम, ना निरखै रूप।
शिष्य जीव जड़ता जगत, गुरु सत ब्रह्म स्वरूप।१०१।

रोप दिया पग आपका, हिये उदासी आय।
किमकर्तव्य विमूढ़ हूं, गुरुजी करो सहाय।१०२।

जंगल में मंगल करै, पतझड़ करै बहार।
दुख नै सुख में बदल दे, गुरु री शक्ति अपार।१०३।

गुरु री वाणी धन्य है, मुख सूं निकलया बोल।
जै तेरे में समझ है, पीले मिसरी घोल।१०४।

अजर अमर गुरु नाम है, अटल सत्य रो रूप।
गुरु श्रद्धालु मानखो, पड़े नहीं भव कूप।१०५।

वेद पुराण बखाणरया, सैं शास्त्रा रो सार।
गुरु प्रसन्न तो समझल्यो, होगा बेड़ा पार।१०६।

गुरु किरपा सूं पाइयो, वरदा रो वरदान।
नाम बिसाऊ रो हुयो, आखै हिंदुस्तान।१०७।

गुरु महिमा माला बणी, मिणिया इक सौ आठ।
घाटे हालो काम नी, सदा रवै सब ठाठ।१०८।

                       समर्पण

गुरु महिमा री महक या, शतक रूप तैयार।
गुरु चरणा में भेंट है, घनो घनो आभार।१०९।