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Thursday, 14 March 2019

सेहत और मर्ज

जो सेहत में इतनी दूर आते नहीं थे,
चलो, अब वो मिलने आएंगे।

बीमारी में बात की उसने,
चलो, अच्छा है, इसी में खुश हो जाएंगे।

सेहत कहां आराम देती है शरीर को,
चलो, अब दो पल सुकून के मिल जाएंगे।

कई महीने हुए, पड़ोसी नहीं दिखे,
चलो, अब दफ्तर जाते दिख जाएंगे।

सेहत तो पढ़ने नहीं देती साहिब,
चलो, अब उस किताब के पन्ने पढ़े जाएंगे।

बहुत दिन हुए, घर की दीवारों से गुफ्तगू नहीं हुई,
चलो, अब इत्मीनान से कुछ बतियाते जाएंगे।

घर दीवार के उस कोने में रोगन की जरुरत है,
चलो, अब सब दरारों के दीदार हो जाएंगे।

भागते भागते खाना ही नसीब होता था,
चलो, अब दो बार नाश्ते हो जाएंगे।

ख्वाइश थी कुछ शायरी सुनने की,
चलो अब सब शायर सुने जाएंगे।

अरसे से मन की बातें ना निकली थी,
चलो अब सारे शिकवे मिटते जाएंगे।

काफी वक्त से टैगोर की कहानियां देखनी थी,
चलो अब सब खंगाले जाएंगे।

हर शाम, घर की शाम याद आती थी,
चलो, अब बच्चों को आवाज़ से हम बहल जाएंगे।

उम्दा लिखना था कुछ,
चलो, अब कुछ फसाने लिखे जाएंगे।

मर्ज ही तो है, लग जाने दो,
दुरुस्त होना ही है, हो जाएंगे।

फिर भी, बेहद ख्याल रखिए खुद का,
एक बार चले गए तो वापिस नहीं आ पाएंगे।