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Monday, 11 December 2017

बाबा और पोती

मेरे गाँव मे एक बाबा हैं तकरीबन 75 साल के, जिन्हें मैं जानता हूँ उनकी पोती की नज़र से।

बाबा जो अपनी पोती को घर में सबसे ज्यादा प्यार करते
औऱ पोती, वो तो उन्हें अपना बेटा मानती ।

बाबा शरीर से कमजोर है।
लेकिन दिल उनका अब भी रिश्तों में मज़बूत है।
पोती ने बताया कि वो जब भी घर आते,
सब के लिए कुछ न कुछ लाते ही थे।
पोती को चॉक्लेट और किताबें पसंद थी,
सो बस, पेट के लिए और दिमाग़ के लिए कुछ खाने का लाते रहते थे।

गाँव में रहते थे,
बाकी कई खामियों की तरह,
बेहतर भविष्य के लिए दूर शहर जाना,
बड़े घर के लिए पापा, बाबा वाला घर छोड़ना पड़ता था।

मैंने सुना कि बाबा बहुत रोये थे उस दिन।
पोती से वायदा लिया की वो हर महीने आएगी औऱ खासकर उनकी आखिरी घड़ी में जरूर आएगी।
बाबा ने कई दिनों तक अपने बेटे से यानी पोती के पापा से बात नहीं की,
सिर्फ इसीलिए की पोती को बाहर क्यों भेजा पढ़ने के लिए।

वो गमगीन थे।
लेकिन हक़ीक़त तो स्वीकार करनी ही थी।
पोती के भविष्य के आगे बाबा का मोह हार गया।
और ये एक तरफा लड़ाई गाँव के हर घर में होती है।
कहीं माँ के हाथ की गरम गरम पूरियां हार जाती है कहीं बाबा की चॉक्लेट।
कितने खुश नसीब होते हैं ना शहर वाले।

पोती जब भी मौका लगता बाबा से मिलने आती।
अपनी सारी बातें बाबा को बताती।
मुझे शंका है कि इस उम्र में बाबा को सब सुनता समझता भी होगा,
लेकिन बाबा तो उसे देख कर ही बच्चे के जैसे खुश रहते,
जैसे कोई बच्चा कई दिनों बाद माँ को देख कर खुश होता है।

बाबा की तबियत अब बार बार बिगड़ने लगती है,
हालांकि ठीक हो जाते हैं कुछ दिनों में।
पोती को बुला लिया जाता है ऐसे नाज़ुक मौको पर।
वायदा निभाने के लिए।
या शायद बीमार बाबा की खतरनाक तरकीब हो पोती को देखने की।
या भगवान पोती की दुआओं को पूरा करता है लेकिन बाबा को कष्ट देकर।

थोड़े दिन पहले ही पोती के पढ़ाई के आखिरी इम्तिहान शुरू हुए हैं।
औऱ साथ ही बाबा की तबियत में तेज गिरावट भी।
दोनों एक दूसरे की स्थिति से बेखबर।

दोनों के लिए कितना मुश्किल है ये सब,
एक तरफ पोती की बौद्धिक परीक्षा और दूसरी तरफ बाबा के शरीर का परीक्षण।
दोनों ने ही मन ही मन वायदे किये होंगे कभी, एक दूसरे को हिम्मत देने की।
दोनों का मन एक दूसरे में रहता था लेकिन फिर भी मिलना कहाँ आसान होता था।
खुद के अच्छे भविष्य की चाहत भी तो कलियुगी मोह है।
और शायद स्वार्थ भी
जिसे व्यवहारिकता की आड़ में सही मानना पड़ता है।

कुछ दिनों से बाबा उम्मीद में हैं कि पोती आने वाली है।
उम्मीद पर कल कायम है, लेकिन कल किसने देखा है।
आज रात 8 बजे बाबा के शरीर ने परीक्षण में जवाब देना बंद कर दिया।
ऐसी परिक्षा की जवाब न दो तो मृत घोषित हो जाते हो।बाबा का भी नाम अब मृत शरीर कर दिया गया।
पोती अपना वायदा नहीं रख पाई।
पोती उनसे दूर अपने इम्तिहान की तैयारी कर रही है,
इन सबसे बेखबर।
इत्तला नही की गई उसे,
उसके इम्तिहान को अग्नि परीक्षा बनने से रोक लिया गया।
लेकिन बाबा के आखिरी वक्त के इम्तिहान में वो उपस्थित भी नहीं हो पाई।

सोचता हूं बाबा की आखिरी इच्छा क्या रही होगी।
उन्होंने अपनी पोती से जल्दी से मिलाने की इच्छा करी होगी,
या उन्होंने अपनी चॉक्लेटी दुलार की पहले ही हार मान ली होगी।

सोचता हूँ कि पोती पास होती तो क्या होता। क्या बाबा कुछ दिन औऱ जी लेते?
सोचता हूँ कि अब पोती क्या कहेगी, करेगी जब उसे बताया जाएगा सब कुछ,
उसके इम्तिहान के बाद।
सोचता हूँ घर वालो पर क्या बीत रही होगी जब पोती उन्हें दोषी ठहराएगी।
खुदा जाने। क्यो ऐसे हालात पैदा करता है वो!

पोती के लिए बाबा की बातें भूतकाल हो जाएंगी।
वो अब अपना बेटा खो चुकी है।