Sunday, 8 January 2017

अस्पताल+Gender sensitivity+भाग्य :- Non-Literary कहासुनी


मेरे एक प्रिय मित्र का हॉस्पिटल में पहला अनुभव:

"मेरा पहला अनुभव था यूँ अस्पताल में बैठ कर अपने ऊपर ही होने वाले ऑपरेशन का इंतज़ार करने का। ऑपरेशन था एक फोड़े का जिसे निकलना था। मेरे जैसे और भी 3 लोग इंतज़ार कर रहे थे। एक बूढी अम्मा जो कुछ बोल नहीं रही थी, एक और अम्मा जिनके दाये पांव में एक बड़ा मस्सा हो गया था, एक 7-8 साल की केशिका जिसके हाथ में प्लास्टर बंधा हुआ था। सबसे पहले केशिका को ही ले जाया गया। बार्बी डॉल बोल रहे थे सब उसको। थी भी। इतनी प्यारी बच्ची। डर भी लग रहा था उसको जिसका सबको डर लगता है- वही डरावना इंजेक्शन। हम सबका एक एक करके ऑपरेशन हुआ। ऑपरेशन के वक़्त डॉक्टर मुझसे मेरे Profession  के बारे में पूछ रहे थे मेरा ध्यान भटकाने के लिए। प्रश्न भी वही घिसा पिटा जो की आजकल सब पूछते है कि demonetisation से तो काफी फायदा हुआ होगा आपको। और हमेशा की तरह हक़ीक़त explain करने की बजाय मैंने इंजेक्शन के दर्द से कराहते हुए हाँ कह दिया। ऑपरेशन होकर एक जनरल वार्ड में सुलाया जा रहा था। मुझे भी ले जाया गया। वह जो सबसे कोने वाला बेड है, मुझे मिला।

और किसी नसीब से मेरे बाजु वाले bed पर एक लड़की आई। नहीं नहीं, मामला आगे नहीं बढ़ना, तो कृपया अपने दिमाग के घोड़े न दौड़ाये। बस ऐसे ही बता रहा हूँ। सिस्टर उसको भी वही डरावना इंजेक्शन देने की बात कर रही थी कोई एलर्जी का पता लगाने के लिए । वो लड़की मासूम आवाज़ में बोली की- नहीं है कोई एलर्जी मैं बता रही हूँ ना, बस ये मत लगाओ। मुझे हंसी आगयी थी और सिस्टर भी हंसने लगी और बोली की देखो PATIENT भी हंस रहा है। मैं सोचा यार ऑपरेशन थिएटर के अंदर आकर सबका नाम एक ही हो जाता है- PATIENT। ये अच्छा है। नहीं तो हर जगह आधार card दिखाना पड़ता। मैं सोच कर खत्म हुआ तब तक वो लड़की मेरी तरफ eyebrow ऊपर करके देख रही थी और दबे होठो से smile कर दी। नहीं नहीं, मुझे कुछ नहीं हुआ। बिना घायल हुए मैं थोड़ी देर बाद पूछा कि हुआ क्या है आपको? वो बोली की पता नहीं। हा हा हा हा। मुझे वापिस मन ही मन में हंसी आने लगी। सोचा पिछली बार हंस दिया था इसलिए नहीं बता रही या फिर इसे सच में नहीं पता की क्या हुआ है या फिर वही पुरानी thought process की लड़की है, नहीं बात करनी होगी। ठीक है, मुझे भी कोनसी भूख लग रही थी बात करने की। मत करो। मैं कोने में सोता हुआ कभी मेरे सर के ऊपर बिना काम के लटकता हुआ पाइप देखता कभी टाइल गिनता जितनी एक बार में मुझे दिख रही हो बिना आँखे घुमाये। Timepass करने के भी अपने तरीके होते है। कोई इसमें भी creativity ढूंढ लेता है, और कोई मेरी तरह tiles गिन कर ही काम चल लेता है। मुझे एक दोस्त की याद आई जो यदि मेरी जगह होता तो लड़की से बात करके ही टाइमपास करता पक्का। खैर! वैसे मैं खुश ही था कि मैंने भी कोई भाव नहीं दिया उसको।

इतने में उस लड़की को हटाया गया। एक बार तो 'कभी अलविदा न कहना' और'तुस्सी जा रहे हो-तुस्सी ना जाओ ना' की feeling आई लेकिन हंसी भी आ गयी। और देखा तो एक मोटा सा आदमी को लाया जा रहा है जिसके पांव मे अंगूठेे के आसपास पट्टी थी। मन में निकला धत्त तेरी की ! लेकिन वो आदमी हंसमुख लग रहा था। आते ही बोल hii. मैंने भी जवाब दिया। और बस बाते होने लगी। क्या हुआ आपको से क्या करते हो तुम तक। पता चला की उनकी पत्नी केक, चॉक्लेट वगैरह बनाती है घर पर ही। मुझे लगा वाह, खुश ही रहता होगा ये इंसान। कभी नाराज़ होने का मौका मिलता भी होगा गलती से तो वाइफ खुद केक बना के और खिला के ही मनाती होगी। शायद।
इन खुशमिजाज आदमी से बातेे होने लगी तो जैसे ही इन्हें पता चला की मैं CA हूं तो पहला शब्द wife की income tax return ही आया। अच्छा ही है। सोते सोते काम मिल रहा है। हॉस्पिटल का थोड़ा खर्च तो हॉस्पिटल में सोते सोतेे निकल आएगा। Deal done.

बाद मे मुझे और उस आदमी को बाहर कुर्सी पर बैठने के लिए भेज दिया। पता चला बाहर भी वही लड़की बैठी है सामने जो पास में बेड पर बैठी थी। ना ना, मैं कोइ खुश वगैरह नहीं हुआ। लेकिन उसके चेहरे से लग रहा था कि वह बहुत दर्द में है। ठीक है । मुझे भी बात नहीं करनी थी । तब एक अम्मा ने उस लड़की से पूछा कि बेटा क्या हुआ तुम्हें और उसने उनके कान में या फिर कुछ बहुत ही धीमे से कुछ बताया। तब मुझे लगा क्या पता शायद कोई ऐसी बीमारी हो जो मुझे समझ नहीं आती या बताने लायक नहीं हो। और मुझे हमारे GMCS की क्लास में पढ़ाया हुआ एक Gender sensitivity का दिन याद आ गया। और मुझे Gender sensitivity का एक और पहलू समझ आया। मुझे लगा मैंने फालतू ही नाटक किए जहां शायद मैं गलत था।


मेरे साथ मेरे वह मोटा आदमी, नहीं माफ़ कीजिये, वह भला आदमी भी आ गया था। हम दोनों मिलकर बाहर बैठकर ज्ञान झाड़ने लगे। वह दो जो अम्मा थी वह भी बाहर आ गई। हम दोनों उन दोनों को बोलने लगे कि टेंशन मत लो, हो जाएगा सही, don't worry और सब कृष्ण की लीला है ब्ला ब्ला ब्ला।

कहानी सुनने के बाद मैं अपने observer दोस्त को बोला - 
'अस्पताल एक factory की तरह है जहाँ लोग अपने रोग के कारण नकारत्मकता के साथ आते है लेकिन ज्यादातर लोग वहां से ठीक होकर सकारत्मकता के साथ निकलते है।  यदि वहाँ उपस्थित लोगों पर थोड़ा अध्ध्यन किया जाये तो कुछ सीखा जा सकता है। और तो और तुम्हे अस्पताल में Professional work  मिलने की कोई उम्मीद नहीं थी और वो मिल गया। उम्मीद तो लड़की मिलने की भी नही थी लेकिन ये उम्मीद तो ऐसी है कि तुझे करने की जरूरत नहीं पड़ती । by default है तेरे अंदर। और वो उम्मीद ध्वस्त हो गयी। 
In Short, बिन मांगे मोती मिले, मांगे मिले न भीख।' बस इतना कहते ही वो मेरे हाथ जोड़ के रवाना हो गया। मैं दो मिनिट चुप रहा। समझ गया था कि वो सच में चला गया। अब मैं भी किसे बतियाता। अगली बार आयेगा तब पका दूँगा बाकी का। तब तक bbye।

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