Wednesday, 9 January 2019

तुम्हारी तस्वीर!

अभी अभी मैनें तुम्हारी तस्वीर देखी,
लगा कि बस जन्नत देख ली हो जैसे।

रुक गया मैं कुछ पल के लिए,
ठहर कर इबादत करते हो जैसे।

झुकी झुकी सी नजर, हया आंखो में,
देख के मुझे, तूने इकरार किया है जैसे।

मुस्कराहट तुम्हारी इतनी खालिस,
देख के इसको, खोट खुद भागे जैसे।

वो लट जो तुम्हारे गाल को छू रही है,
मेरी ही कोई ख्वाहिश पूरी कर रही हो जैसे।

चेहरा तेरा इतना हंसी,
दुनिया भूल कर तुझे ही देखता रहूं जैसे।

इतनी खूबसूरत कैसे हो तुम,
चांद भी देख के शरमा जाए जैसे।

तेरी नीली पोशाक, चेहरे की रंगत,
आसमान में चांद निकल आया हो जैसे।

काला धागा बांध रखा है तुमने,
नज़रों से घायल करने वाली को भला नज़र लगती हो जैसे।

हसीन कारीगरी है, ग़ज़ल हो तुम,
और मैं वो ग़ज़ल गुनगुना रहा जैसे।

तू ही बता अब क्या किया जाए !?

तू ही बता, अब क्या किया जाए।

अब भी तुम मेरे सपनों में आती हो,
क्यों भला बीच रात में जगा जाती हो,
जग कर सोचता हूं कि अब भी क्यों आती हो तुम।

ख्यालों में आती हो उसका क्या,
क्या मिलता है अब तुम्हें,
जब कुछ मुमकिन ही नहीं फिर भी।

कभी कभी मुंह से निकल पड़ती है तुम्हारी बातें,
क्या चाहती हो अब आखिर,
अब तो साफ ही है कुछ नहीं हो सकता।

तुम्हारे नाम को देखकर ठिठक जाता हूं अब भी,
ऐसा क्या रखा है तुम्हारे नाम में,
रास्ते मिल ही नहीं सकते अब तो, फिर भी।

याद आ जाती हो कभी भी चलते फिरते,
कब तक ऐसे परेशान करोगी तुम,
सोचता हूं क्या किसी मोड़ पर फिर मिलोगी तुम?

तू ही बता, अब क्या किया जाए।