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Wednesday, 6 February 2019

क्योंकि इतना कमजोर तो तुझसे इश्क़ भी नहीं!

तेरी खूबसूरती के लिए मैं एक शायरी लिख दूं,
लेकिन इतनी कलाकार तो मेरी कलम भी नहीं।

तेरी रूहानी मुस्कराहट को कागज पे उकेरूं,
लेकिन इतना काबिल तो कोई कागज भी नहीं।

तेरी खिलखिलाहट को गाने में पिरो दूं,
लेकिन इतनी मुकम्मल तो कोई धुन भी नहीं।

तेरी मासूमियत को मंच पे पेश करूं,
लेकिन इतनी पाकीज़ा तो ज़मीन भी नहीं।

तेरी अदाओं को नृत्य में ढालू,
लेकिन इतना प्यारा तो कोई ढंग भी नहीं।

तेरे हुस्न जैसी कलाकृति बना दुं,
लेकिन इतना दिलकश तो कोई सामान भी नहीं।

कैसे बयां करूं तेरी कशिश,
इतना हसीं कला का कोई रंग भी नहीं।

सोचता हूं जैसी हो, खुदा के जैसे एक ही हो,
फिर भी इतनी खालिस तो मेरी इबादत भी नहीं।

करता रहूंगा कोशिश तुझे बयां करने की, हारुंगा नहीं,
क्योंकि इतना कमजोर तो तुझसे इश्क़ भी नहीं

Wednesday, 9 January 2019

तुम्हारी तस्वीर!

अभी अभी मैनें तुम्हारी तस्वीर देखी,
लगा कि बस जन्नत देख ली हो जैसे।

रुक गया मैं कुछ पल के लिए,
ठहर कर इबादत करते हो जैसे।

झुकी झुकी सी नजर, हया आंखो में,
देख के मुझे, तूने इकरार किया है जैसे।

मुस्कराहट तुम्हारी इतनी खालिस,
देख के इसको, खोट खुद भागे जैसे।

वो लट जो तुम्हारे गाल को छू रही है,
मेरी ही कोई ख्वाहिश पूरी कर रही हो जैसे।

चेहरा तेरा इतना हंसी,
दुनिया भूल कर तुझे ही देखता रहूं जैसे।

इतनी खूबसूरत कैसे हो तुम,
चांद भी देख के शरमा जाए जैसे।

तेरी नीली पोशाक, चेहरे की रंगत,
आसमान में चांद निकल आया हो जैसे।

काला धागा बांध रखा है तुमने,
नज़रों से घायल करने वाली को भला नज़र लगती हो जैसे।

हसीन कारीगरी है, ग़ज़ल हो तुम,
और मैं वो ग़ज़ल गुनगुना रहा जैसे।