तेरी खूबसूरती के लिए मैं एक शायरी लिख दूं,
लेकिन इतनी कलाकार तो मेरी कलम भी नहीं।
तेरी रूहानी मुस्कराहट को कागज पे उकेरूं,
लेकिन इतना काबिल तो कोई कागज भी नहीं।
तेरी खिलखिलाहट को गाने में पिरो दूं,
लेकिन इतनी मुकम्मल तो कोई धुन भी नहीं।
तेरी मासूमियत को मंच पे पेश करूं,
लेकिन इतनी पाकीज़ा तो ज़मीन भी नहीं।
तेरी अदाओं को नृत्य में ढालू,
लेकिन इतना प्यारा तो कोई ढंग भी नहीं।
तेरे हुस्न जैसी कलाकृति बना दुं,
लेकिन इतना दिलकश तो कोई सामान भी नहीं।
कैसे बयां करूं तेरी कशिश,
इतना हसीं कला का कोई रंग भी नहीं।
सोचता हूं जैसी हो, खुदा के जैसे एक ही हो,
फिर भी इतनी खालिस तो मेरी इबादत भी नहीं।
करता रहूंगा कोशिश तुझे बयां करने की, हारुंगा नहीं,
क्योंकि इतना कमजोर तो तुझसे इश्क़ भी नहीं।
इक दम में तू ने फूँक दिया दो-जहाँ के तीं
ReplyDeleteऐ इश्क़ तेरे आग लगाने को इश्क़ है- मीर
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बहुत ख़ूबसूरती से लिखी आपने! कोशिश करते रहिए,आपकी कलम भी इश्क़ की तरह ही मज़बूत रहे!
बहुत बहुत धन्यवाद बेहतरीन जवाब के लिए! बस आपकी हौसला अफजाई से कलम को मजबूती मिलती रहेगी।
Deleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteWah
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