Sunday, 30 April 2017

परी, आनंद और अब्दुल

कल कुछ अलग मन हुआ,
सोचा जन्मदिन कुछ बच्चो के साथ मनाते है,
बच्चे भी कुछ खास,
कुछ HIV से बीमार और कुछ अनाथ।

सबके साथ कुछ वक्त बिताया,
कुछ मस्ती कुछ नचाया,
फिर सबको खाना परोसा,
सब खाना खा रहे थे,
कुछ धीरे, कुछ जल्दी,
कुछ को चावल पसंद नही थे,
किसी को खीर ज्यादा ही पसंद थी।
हम कोशिश कर रहे थे कि
जिसको जो चाहिए वो उसे तुरंत दे दें,

तभी एक आवाज़ आई,
देखा तो वो छोटी परी रो रही थी,
मेरे कुछ साथी दौड़ के उसके पास गए,
और पूछने लगे उसके रोने की वजह,
खाना अच्छा नहीं लगा या कुछ और चाहिए,
कुछ बड़े बच्चे उसकी रोते हुए की तरफ देख रहे थे,
कुछ बच्चे अभी भी अपने खाने में मग्न थे-
-शायद ये उनके दिन में से एक अच्छा वक्त होता है।
वो अच्छी थी, एक चॉक्लेट में खुश होगयी।

मैं वही खड़ा था,
सबको देखने समझने की कोशिश में शायद,
लेकिन कुछ ऐसा भी होता है इस दुनिया में,
जो देखने समझने के बाद भी हम अनदेखा नसमझा करना बेहतर समझते है,
देखा कि उन बच्चो में एक बच्चा गर्दन झुकाये खा रहा था,
और बार बार अपनी कलाई से अपने गालों को साफ कर रहा था।
अरे, ये तो वही है जो सबसे अच्छा नाच रहा था- आनंद।

समझ आया कि वो चुपचाप रो रहा था।
उसे भी खाना अच्छा नहीं लगा या
अपने घर के पुराने दिन याद आगये।
सोचा कि खाना पसंद नापसंद आना इन बच्चो के लिए कोई सवाल ही नहीं था।
सब इतनी किस्मत वाले कहाँ होते है।
पुराने दिन ही याद आये होंगें।

अपनी जानलेवा बीमारी पता लगने से पहले के दिन,
जब मां और कभी कभी पापा के साथ बैठ कर खाना खाया करता था।
और आज उन दिनों की याद आ गयी होगी अचानक,
खीर देख कर शायद।
मुझे भी आ रही थी।

एक पल ख्याल आया कि उसको जा के पूछूँ
क्या हुआ कुछ चाहिए वगैरा,
लेकिन हिम्मत नही हुई
पांव ही नही हिले ये सोच कर की,
उसने यदि बोल दिया की-
- घर जाना है,
तो मैं क्या कहूँगा!
यदि उसने कह दिया कि
उसे मम्मी के हाथ से ही खाना है
तो मैं क्या करूँगा!
नहीं, मैं उसे पूछ कर और परेशान नहीं कर सकता,
और उसका जवाब सुनकर मैं भी
अपनी मज़बूरी पर और परेशान नहीं होना चाहता,

इससे अच्छा है कि मन में ही उन दिनों को याद करके आंसू निकाल ले,
किसे पता है, उसका कारण जान कर कुछ और बच्चो का खाना मुश्किल हो जाये!
वो चॉक्लेट से नहीं मान सकता था,
इसलिए अपनी मज़बूरी का फायदा उठा कर
मैंने उसको अनदेखा नसमझा कर दिया।

परी को भी शायद कुछ याद आया होगा,
नहीं, उसको तो याद भी नही होगा
कि इससे पहले उसकी एक ज़िन्दगी और थी।
या ये भी हो सकता है कि,
आधे से ज्यादा बार उसे,
घर या घर वालो की बजाय,
चॉक्लेट ने ही खुश किया होगा,
चॉक्लेट से उसका रिश्ता ज्यादा था बजाय घर से!

ये सब सोच कर देख कर मुड़ा
कुछ और बच्चो को देखने
एक और छोटा बच्चा, अब्दुल,
खाने के बीच मे झपकियां ले रहा था,
वो मासूम चेहरा, झपकियों के साथ और भी कई गुना मासूम होगया था,
दिल पिघल जाता है कुछ नज़ारे देख कर,
इस बार मेरे पांव टिक नहीं पाए,
और उसे खिलाने उसकी तरफ चला गया।

चावल में थोड़ी सी पड़ी दाल सूख गयी थी,
कैसे खा सकेगा वो इसको,
लेकिन उनको सिखाया भी किसने होगा,
कि कितने चावल में कितनी दाल लेते है,
खीर थी तो वो खाने को राजी हो गया,
लेकिन उसे भी किशमिश पसंद नही थी खीर में-
ठीक मेरी तरह,
मेरे घर में तो सबको पता था
लेकिन अब्दुल के बारे में यहाँ,
किसी को पता भी होगा?

आओ कुछ करते है इन बच्चो के लिए,
जो आप अपने बच्चो के लिए करते है,
उसका एक छोटा सा टुकड़ा।
जिंदगी सबके साथ एक जैसी नहीं होती,
किसी को पलकों पर बिठा कर रखती है
तो किसी को पाँव में भी नहीं बिठाती!
जिंदगी है; मौत के जैसे इसके सामने भी
सबकी कहाँ चलती है!

3 comments:

  1. Sir Words nhi hai, Selfis life ko chod kr m b jeena chahunga ab dusro k liy

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  2. Wow..Great to see such a change.. Congratulations :)

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