Saturday, 30 September 2017

एलफिंस्टन हादसा


आज 29 सितम्बर है और मेरा इंटरव्यू है,
नवरात्रि के हिसाब से मैने रंग पहना है,
जिंदगी का नया पन्ना शुरू करने की उमंग,
माँ का आशिर्वाद साथ में,
यही सोच के चल रही हूँ ।

रेलवे स्टेशन के लिए समय से निकली हूँ मैं घर से,
लेकिन मुंबई का ट्रैफिक कहाँ कुछ समझता है,
एम्बुलेंस को जगह नहीं देता,
मैं तो क्या ही चीज़ हूँ,
बस ट्रैफिक सह रही हूँ ।

स्टेशन पहुँच कर इतनी भीड़ देख पहले ही सहम गयी,
इतनी भीड़ में कही पहुंचना भी बड़ी बात है,
Ola uber लंबे रास्तो में अमीरों के खेल है,
सब लोकल से ही जाते हैं,
कोई नहीं, अब मैं भी चढ़ गयी हूँ ।

Indiabulls बिल्डिंग में मेरा इंटरव्यू है,
एल्फिंस्टन स्टेशन पर उतरना है,
इतनी तेज बारिश का इस महीने में आना आश्चर्य है ,
लेकिन कई बार आती है और कुछ परेशान भी करती है,


यही सोच कर लोकल ट्रेन के धक्के खा रही हूँ। 

एल्फिंस्टन स्टेशन पर उतर कर देखा तो
पाया कि ब्रिज पर भीड़ इकट्ठा है
जाने क्यों है, लेकिन फिर भी और लोग इक्कठे हो रहे है,
सबको जाना है काम पर, और मुझे भी,
मैं भी उसी भीड़ का हिस्सा हो गयी।

लेकिन यह क्या हुआ, यह शोरगुल इतना अचानक,
सब चिल्ला क्यों रहे है,
कोई बढ़ ही नहीं रहा आगे और पीछे से धक्के आ रहे है,
मेरे पास वाले सब चिल्ला रहे हैं।

और अचानक मेरे बगल वाला आदमी साँस न आने के कारण बेहाल हो गया,
पता नहीं उसे उस भीड़ में गिरा दिया गया या खुद गिर गया,
बहरहाल, कोई उसकी जिम्मेदारी लेने को तैयार नहीं है,
लेकिन हैरत है कि लोग उसके गिरने के बाद भी बढ़े ही जा रहे है।   
शायद वो किसी के पांव के नीचे आ गया होगा अब तो,
शायद बेहोश और अब तो मौत के करीब,
कुछ लोग चिल्लाये उसकी मदद के लिए,
जगह बनाने की कोशिश में कुछ और गिर गए शायद,
और यहाँ भगदड़ सी मच गई । 

ये क्या ! मैं भी गिर चुकी हूँ अब,
मुझे लोगों के जूते दिख रहे है,
लोग अपना सामान जो जगह रोके हुए था, फेंक रहे है,
मुझे गिरता हुआ सामान भी दिख रहा है,
मैं महसूस कर पा रही हूँ वो आवाजें
और लोगों का उपेक्षा करते हुए बढ़ना,
कोई मेरे मुँह पर पाँव रख रहा है तो कोई पाँव पर,
किसी को सुध नही है क्योंकि सबको खुद की जान बचानी है,
हवाईजहाज की कुर्सी की पेटी वाली घोषणा सबने ही सुनी हुई है, लग रहा है।

आह!! किसी ने मेरे पेट पर पाँव रखा और मैं चिल्ला पड़ी,
मेरे पास और भी लोग गिरे हुए हैं,
वो भी चिल्ला रहे हैं,
लेकिन अफसोस, अभी, आज सुनने वाला कोई भी नहीं है।

मुझे याद आया वो मम्मी का दही खिलाना,
पापा का आशिर्वाद देना,
लेकिन इस वक़्त लग रहा है कि कुछ काम नही आएगा,
मुझे ताकत चाहिए कि मैं खुद उठ सकूँ,
काश आज बारिश या भीड़ देख कर मैं रुक जाती थोड़ा और,
लेकिन इंटरव्यू वाले कितना ही समझते उस बात को।
आज आखिरी दिन शक्ति की माँ दुर्गा को भी याद किया,
लेकिन अब जरा भी ताक़त नहीं लग रही है,
चिल्लाते भागते लोग, और साँस का कुछ पता नहीं,
मेरे हाथों को दबाते हुए कोई आगे बढ़ गया,
अभी किसी ने मेरे गर्दन पर पाँव रख दिया,
मुझे बिल्कुल सांस नहीं आ रही है,
क्या इन लोगों के पाँवो को अहसास नहीं होगा कि वो किसके ऊपर हैं,
या शायद उन्हें निकलना है बस इसीलिए वो मुझे नज़रअंदाज़ कर रहे हैं।

समझ नहीं आ रहा किसको गाली दूँ,
इन लोगों को या खुद को,
इस मौसमी बारिश को,
ब्रिज बनाने वालों को,
ब्रिज को जरूरत के हिसाब से न बदलने वालों को,
या पूरे शासन तंत्र को,
आज तक मैंने ही कुछ नहीं किया देश के लिए,
बस यही सोच के मैं ज्यादा सोच नही पाई ।

आह! एक और पाँव मेरे पेट पर,
अब तो लग रहा है जैसे ताबूत में आखिरी कील की जरूरत रह गयी है बस,
कितना दुख भरा है ऐसी मौत का अनुभव,
मेरा चिल्लाना अब मुझे ही नहीं सुन रहा है,
कोई मदद कर भी नहीं सकता,
बस अब ऐसी घुटन नहीं सही जाती,
और ऊपर से ये मुझे जमीन समझते नासमझ लोग,
अँधेरा हो गया है आंखों में, लेकिन अभी तो सुबह ही थी,
हम्म! मेरा आखिरी वक्त आ गया है।

अब मैं साँस नही ले सकती,
मुझे मेरे ऊपर खड़े लोगों का भार भी महसूस नहीं हो रहा,
मैं अब निर्जीव हूँ।
मैं मर चुकी हूँ।
अब कोई दर्द नही होगा,
बस यही सोच कर खुश हूँ।

मैं अब आत्मा हूँ।
मैं अब आज़ाद हूँ।

अब आजाद मैं, देख पा रही हूँ कि कितने ही औऱ लोग दब चुके है,
कुछ चिल्ला रहे हैं औऱ कुछ मेरे शरीर की तरह निर्जीव हो गये है,
यह हृदय विदारक दृश्य, कौन रहा होगा इसका कारण;
खैर ये काम तो सबको आता है, अब सब कर ही लेंगे।

लोग इक्कठे हो चुके है ब्रिज के नीचे,
कोशिश कर रहे है मदद की, लेकिन व्यर्थ,
मदद की जगह ही नहीं है।
लोगों का चिल्लाना कम हुआ है और जिंदा लोगो की भीड़ कुछ मरे हुवे लोगों की भीड़ में बदल गयी है।
मैं भी इस नई भीड़ का हिस्सा हूँ।
अब केवल कुचले हुए लोग पड़े हैं।

वो वहाँ ऊपर मैं खुद को देख पा रही हूँ,
अच्छी लग रही थी सुबह आईने में तो,
अब तो सूरत ही नहीं पहचान पा रही हूँ।
हमें अलग इक्कठा किया जा रहा है,
जिंदा लोगों में से कुछ रो रहे हैं, कुछ चिल्ला रहे हैं,
किसी ने साथ वाले को खोया तो किसी ने खुद के शरीर को खोया,
नहीं, बस अब मैं और नहीं देख सकती।
अब मैंने इस संसार से मुँह मोड़ लिया है।

मैं सोच रही हूं अब क्या होगा,
कुछ खबरी आएंगे और चिल्लायेंगे,
कुछ मदद वाले आएंगे,
जाँच समितियाँ बिठाई जाएंगी,
5-10 लाख रुपये दिए जाएंगे,
शोक व्यक्त होगा,
नेता कुछ नाटक करेंगे,
और फिर भूला दिए जायेंगे,
इस हद तक कि कोई बड़ा जमीनी बदलाव नही होगा,
यही सब पुराने राम भरोसे ब्रिज,
और वही मानसिकता,
ना कोई कुछ सीखेगा, न बोलेगा,
किस्मत में लिखा था ये सोच के भुला दिए जाएंगे,
देखा है मैंने बहुत बार, ऐसा ही होता है,
सबक सीखते तो ऐसा होना बन्द हो गया होता,
यही चलता आया है यही चलता रहेगा,
बशर्ते जब तक हर घर से या कम से कम हर नेता के घर से ऐसे किसी एक की मौत न हो जाये।
उम्मीद नहीं कि तब तक कुछ होगा भी,
कोई कुछ करना भी चाहे तो उसे किसी का आधार नहीं मिलता,
बस यही भारत है,
मेरे हक़ीक़त का भारत,
चमकता हुआ भारत,
विश्वगुरु भारत,
जहाँ मेरे जैसे इन बीसियों लोगो की जिंदगी की कोई कीमत नहीं है,
और जो अभी यहाँ नहीं है आज, उनके लिए ये केवल हादसा है जो कि होता रहता है,
उम्मीद केवल उनसे है जो मेरे ऊपर पाँव रख कर गए थे जिंदा रहने के लिए और जो जिंदा बच गए ,
उम्मीद है वो कुछ बदलाव का बिगुल बजायेंगे।

सबकी आत्मा शरीर छोड़ के जा रही है,
आज उनको भी उम्मीद से ज्यादा अफसोस होगा,
अब उम्मीद पे उनकी दुनिया कायम नही रहीं।
21 जने और भी मरे है, ऐसे ही सैकड़ो और भी मरेंगे,
उम्मीद है तो किसी और देश में अगले जन्म की,
बस यही सोच कर मैं जा रही हूँ....। 

Monday, 18 September 2017

दुर्गा, आधी दुनिया और गालियाँ

क्यों?
आखिर क्यों?
क्यों सारी गालियों में केवल स्त्री की ही गरिमा को तार तार किया जाता है।

क्यों किसी की बुराई में उसकी माँ और बहन को बीच में लाया जाता है,
क्यों बातों ही बातों में तुम वो सब कर देते हो जिसके लिए तुम ही ने, हाँ तुम ही ने निर्भया candle march निकाला था।
तुमने ही उसकी निंदा फेसबुक पर की थी,
तुमने ही ऐसे इंसानो को सजा दिलवाने की मांग की थी।
लेकिन क्यों फिर आज तुम्हें फर्क नही पड़ता,
क्यों अपने ही दोस्त की बहन मां के साथ वही सब बातों में कर देते हो ।

एक ओर तुम माँ दुर्गा आदि शक्ति की आरती करते हो,
दूसरी ओर उसी नारी शक्ति को बातों से ही रौंद देते हो।
एक और अपनी माँ के लिए mothers day पर कविताएं लिखते हो,
ओर दूसरी तरफ दूसरों की माओं के साथ बातों में ही....।
एक और तुम women's day पर अच्छे अच्छे post paste करते हो, 
और दूसरी तरफ उन्हीं women की धज्जियाँ उड़ाते हो।
एक और अपनी बहन से राखी बंधवाते हो, सुरक्षा का वादा करते हो,
और दूसरे ही दिन तुम्हारा दोस्त तुम्हारी बहन के लिए कुछ भी कह जाता है और तुम हंस देते हो।

कैसे बेटे और भाई हो तुम..सोचो।

और तो और ये सब कोई और नहीं, तुम करते हो और दोस्त को करने देते हो। वाह।

क्यों तुम्हें शर्म नहीं आती..

शायद यह सोच कर की बोलने वाले का यह मतलब नहीं है।
तो फिर जब मतलब ही नहीं है तो कहना ही क्यों है।
और कुछ कहना ही है तो और भी बहुत शब्द है।

क्यों तुम्हें सामने वाले के सम्मान को ध्वस्त करने के लिए उसके बहन और माँ के सम्मान को कुचलना होता है।

ताज़्ज़ुब और मसखरा तो तब होता है
जब वो फेमिनिज्म की बातें करती है और दूसरी तरफ गालियां बकती है।
जब स्त्रीवाद (फेमिनिज्म) की बाते करने वालियाँ भी वही सब कहती है जिसके विरोध में अपनी दुकान चलाती है।
अपनी ही जाति के सम्मान को पैरों तले रौंद कर,
वो अपनी जाति की बराबरी की बाते करती है।
जो खुद अपनी आधी दुनिया के सम्मान की फिक्र नही रखते,
तो कोई और उस बारे में क्यों दिमाग लगाये।

गाली देना बिल्कुल भी cool नहीं है यार,
समझो कि किसी की इज़्ज़त को यूं तार तार करना cool हो ही नही सकता।

आधी दुनिया, जागो,
कब तक अपने ही तिरस्कार पर यूँ मौन बनी रहोगी,
और कब तक अपना ही तिरस्कार करती रहोगी।
ये तुम ही हो जो मिटा सकती हो इस बुराई को।

आज एक नहीं, हर नारी में शक्ति की जरूरत है।
शक्ति जो ऐसे अपमान करने वालों पर प्रहार कर सके,
शक्ति जो केवल मूर्तियों और किताबों से निकल कर हक़ीक़त में आये।
हे शक्ति, समझाओ अपने भाइयों को, कि किसी और की बहन की इज़्ज़त न उड़ाए।

यकीन रखो इसी तरह तुम्हरी गरिमा बनेगी जब कोई और बहन तुम्हारी सुरक्षा करेगी।
निर्भया के निर्भया बनने के बाद अफसोस करने से अच्छा अभी निर्भया बनो।

दुर्गा तुम्हारा ही एक रूप है।