Friday 21 December 2018

What made a mama, the Shakuni Mama? Interesting things about the Mamashri of Mahabharata.


You will be surprised to know that Shakuni had no enmity with Pandavas. He was enemy of Kauravas. Yes. He was the one who was behind the events which led to Mahabhaarata and ultimately got all Kauravas killed. Interesting. Isn’t it?

Two Incidents made him for what he is known today.

Who was Shakuni: He is recognized as most venomous villain of Indian history / mythology. Subal, the king of Gandhar also had 100 children. Among them one was Gandhari (who became Mother of Kauravas & Wife of Dhritrashtra) & youngest son was Shakuni. He was the reason of developing enmity between Kaurava and Pandvas since their childhood.


Incident 1: Ancestators of Kaurvas had put Shakuni, his father and brothers in Jail. For survival, they used to get only one grain of rice. This way all of them could have died so they all decided to give their grain to the youngest of them: Shakuni. Eventually, all died but Shakuni was alive. He came out of jail using his wit and was having revenge in his mind.

Few believe that reason of sending them behind bars was: Ancestators of Kauravas wanted to conquer Gandhar state and hence put the king and all sons behind bars after victory.
According to others: Gandhari was cursed that her first husband would die. So she was married to an animal first and then she was married to Dhritrashtra. When Dhritrashtra and his family came to know that Gandhari was married earlier, furiously, they sent Gandhar King and all his sons (including Shakuni) behind bars.

Incident 2: Bhishma Pitamah had asked Gandhar King for her daughter Gandhari for marriage of Dhritrashtra. Gandhar King agreed without thinking further. However, later family and Shakuni came to know that Dhritrashtra is blind from birth and to support him, his sister had also blindfolded herself till death, he became furious and decided to take revenge.

The thoughts of revenge coming out of these incidents made a mama, the Shakuni Mama. Although he was also killed in Mahabhararta with Kauravas.

What we learn:  Wisdom>Power. Wisdom if used in wrong direction can be harmful to oneself.

More about the Mamashri: He was killed by Sahadeva on last day of war. Sahadeva took oath to kill him after Draupadi’s insult.
Shakuni’s dice were made from his father’s bone as asked by his father to him. Thus dice always obeyed and showed what Shakuni would ask for. Some believe dice were of ivory and Shakuni was expert in creating illusion and thus created illusion of required numbers on dice.
Because we see good even in bad, Shakuni has a temple in his name in Kerala.



शायरी डायरी

ज़माना हमसे भी पूछेगा जुदाई का सबब,
तू आएगी नहीं पता है, सबब तो बता के जा!

मैं मानता नहीं लेकिन कहती हो कि खुश नहीं रही तुम,
कहाँ क्या कमी रही, वो तो बता के जा!
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लिख डाला है एक पन्ना ऐसा इश्क़ का,
जब जब हवा से पलटे, नम होए।
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क्या उसे इल्म भी होगा,
कि उसको मैं याद करता हूं।
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खुलता है जब वो पन्ना इश्क़ का,
उमड़ता है एक दरिया अश्क़ का।
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अपना वक़्त बरबाद कर रहा हूं मैं,
ना इधर, ना उधर जा रहा हूं मैं।

क्यो कर रहा हूं ऐसा मैं,
जाने किसका इंतज़ार कर रहा हूं मैं।
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किसी के दर्द को लफ्ज़ दे देते हैं चलते फिरते,
दुनिया पूछती है किसके आशिक़ हो!
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उसने कहा शराब मेरी आदत है, जाते जाते जाएगी,
हमने कहा जब तुम भी जा सकती हो तो आदत भी चली जाएगी।
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अजी, ग़ज़ब करतीं हैं आप भी,
समंदर पार कर लिया, लेकिन इक गड्ढे से हार बैठी!

माना समंदर अनजाने में हमने बना दिया था,
लेकिन गड्ढ़ा अकेले का नहीं था, गिरते ही हार बैठी।
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डर जाता हूं मैं, ए कल तुझे सोच के,
मैंने अच्छा खो दिया या और भी अच्छा देगा तू मुझे।
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घर आने का लुत्फ उठाया है मैंने,
कुछ अरसा घर से दूर जो बिताया है मैंने।
कहने को सुख और भी है दुनिया में, फिर भी,
भाइयों को बकवास सुनाने में वक़्त बिताया है मैंने।
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वक़्त की चाल और 
किस्मत की गोटी होती है,
होता वही है जो इनकी मर्ज़ी होती है।
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ये तेरी नटखट मुस्कराहट है या तेरी नज़र,
देखते ही जो देखने में रम जाता हूं।
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उस खिलौने को मेरा शुक्रिया कहना,
जिसने तेरे चेहरे पे खुशियां बिखेर दी।
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काश वो खिलौना नहीं, मैं होता,
तेरे दिल से लग के तेरा हो जाता।
_____________₹_

हर बार तुम पूछती हो कैसे लिख लेता हूं,
ए जान-ए-बहार, तुझे देख के तेरी खूबसूरती मेरी कलम से निकलती है। 
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तेरे बाद शायद तेरे वादे पर अटक गई है मेरी दुनिया,
जाने अब वो वादा भी कौन करेगा।

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 आंखों की शरारत और होंठो की हंसी,
बस और क्या चाहिए दिल को घायल होने में।
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तुम कहती हो तो, तुम्हें हम लफ़्ज़ों की आग दिखाते हैं,
बस एक बात ये है कि तुम हुस्न के अंगारों से इसे सुलग तो दो।
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शहर में बारिश आ रही है और मुझे हिचकियाँ,
क्या उसके शहर में भी बारिश हो रही होगी?

वही बरसती बूंदो की आवाज़ और गीली सी ठंडक,
क्या वो मेरे शहर की बारिश की याद में भीग रही होगी?

अब कुछ इश्क़ में डूबने वाले हैं,
कुछ कीचड़ में परेशां होने वाले हैं,
ज़रा ख्याल रखना तू ए मेरे दोस्त,
तेरे शहर में हादसे होने वाले हैं।
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खुशियाँ न् उडिको मती, खुशियाँ थे बणाओ,
आस, कुनबो अर गुरुजन, सागे थारे रामजी।

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तेरे झूठे वादों से कुछ यूं सपने बुनता रहता हूँ मैं,
जैसे कोई लड़की बिना रंग के रंगोली बनाती हो।
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तूने वादा किया था मिलने का, भूल गयी शायद,
हमारा क्या है, हम तो हमेशा इंतेज़ार में रहेंगे।

Sunday 15 April 2018

Two Things. Not For Rapists BUT FOR YOU.

Two things:

1. You are condemning the rapists. Good. But plz also look into yourself. You are using abusive language and doing exactly the same things through your words which they did with action. Although they did with someone stranger.

Not supporting them. But criticizing you for just burning a candle when you feel like.
Stop using abusive words. There are many other cool things if you really want to appear cool.

First you show respect to them. Then you will be more powerful to condemn rapists.

If you really want to see the change, YOU WILL BRING IT.


2. Why does it have to be unique to catch your attention? Why does it have to happen at someplace beyond imagination like a running bus or a temple to force you to speak against rape?

Why there is this category of USUAL RAPE & NIRBHAYA/ASIFA CASE. A rape is a rape. Why we don't stand against each and every case? Because Rape happens every day and you are too busy to stand against each rape? May be. So we pick up the ones which are too horrific and stand against those selective ones.

But God forbid, if you don't stand against each rape today, you may have to beg people to stand against the one with your known. Yes, harsh hitting but I need to tell you this.

That's it.

Wednesday 28 February 2018

"वो अब भी कहते हैं कि.."

वो अब भी कहते हैं कि हमने उनसे महोब्बत नहीं की,
कमबख्त कोई उन्हें मेरे दिल के हाल बताते ही नहीं।

वो अब भी कहते हैं कि हमने उनसे महोब्बत नहीं की,
जाने क्यों वो हमें समझते ही नहीं।

वो अब भी कहते हैं कि हमने उनसे महोब्बत नहीं की,
वो ऐसा समझते हैं तो अब हम उनको कुछ समझाते भी नहीं।

वो अब भी कहते हैं कि हमने उनसे महोब्बत नहीं की,
सोचता हूँ कि कहीं मेरी तरफ से कुछ कमी तो नहीं।

वो अब भी कहते हैं कि हमने उनसे महोब्बत नहीं की,
मतलब यह भी है कि अब किसी एक में वो बात ही नहीं।

Wednesday 14 February 2018

मंत्रालय building : आत्महत्या और safety net



http://www.asianage.com/metros/mumbai/080218/suicide-attempts-embarrass-government.html

देशभक्त: हा हा हा हा!

आम आदमी: अरे भाई क्यों हंस रहे हो अचानक?!

देशभक्त: अपने मंत्री लोगो ने क्या काम किया है, पता है? अच्छा तुम्हें क्या पता होगा, तुम्हें क्या करना है कि समाज में क्या हो रहा है। तुम्हारी गाड़ी ठीक से चल रही है बस। बाकी भाड़ में जाये भले।

आम आदमी: हाँ भई, नही पता हमें। ऐसे फालतू की टेंशन नही लेता मैं। होना तो वही है जो मंत्रियों को ठीक लगेगा। लेकिन किया क्या है उन्होंने ऐसा जो तुम ठहाका लगा कि हंस रहे हो!

देशभक्त: उन्होंने indirectly बोला है कि तुम्हें मरना है तो भले मर जाओ लेकिन मंत्रालय की building में मरने आओगे तो अब मौत भी नसीब नही होगी। इसका मतलब ये की जिंदगी सुधर जाने की तो उम्मीद वैसे भी नही थी किसी को वहाँ जाने पर..अब आप वहाँ मर भी नहीं सकते।

आम आदमी: नहीं समझा।

देशभक्त: मंत्रालय की building में 2-3 लोगों ने आत्महत्या करली। किसी ने जमीन के बेतुके सरकारी मुआवजे को लेकर तो किसी ने बर्बाद फसल को लेकर। मतलब कोई सरकार की समझ से दुखी था तो कोई भगवान के गुस्से से और सरकार के निट्ठल्ले पन से। तो अब उन्होंने मंत्रालय की building में जाकर आत्महत्या करली। जैसे भगत सिंह ने अंग्रेज़ो की नाक के नीचे बम फोड़े थे, वैसे ही अब लोगों को मंत्रियों की आंखों के आगे जान देनी पड़ रही है कि माई बाप, अब तो सुन लो । ...हा हा हा हा!

आम आदमी: अरे उनकी आत्महत्या पर हंस रहे हो!?

देशभक्त: नहीं, आगे जो बताने वाला था उसपे हंसी आगयी। तो सरकार ने सोचा कि ये समस्यायें तो हम हल कर नहीं पाएंगे, तो लोगों को मरने की favourite जगह कम कर देते हैं। तो उन्होंने मंत्रालय में safety net बांध दिए। बोल रहे हैं कि अब यहाँ मर के दिखाओ।

आम आदमी: हा हा हा। मतलब काम तो करेंगे तब करेंगे, तुम यहाँ मरना बंद करो। लगता है पूरे शहर में safety net बांधने वाले हैं फिर तो।

देशभक्त: नहीं रे बबुआ। इन्हें तो बस ये डर है कि मंत्रालय की building में मरेंगे तो भूत बनके उन्हें ही ना सताए। बाकी भले मरते रहो कहीं भी।

आम आदमी: मतलब मंत्रालय पहले लोग समस्या निपटाने जाते थे उम्मीद के साथ। अब उम्मीद खत्म हो रही है तो खुद को निपटाने जा रहे है।

देशभक्त: ज्यादा बोल रहा है भाई तू। सरकार काम कर रही है। ज्यादा मत बोल।

आम आदमी: सॉरी भाई। मेरी local ट्रेन आगयी। मैं तैयार हो जाता हूँ जानवर बनने के लिए।



Tuesday 13 February 2018

तलब: घर और प्यार

जब ये दुनिया मुझे सताती है,
तुम्हारे साथ वक़्त गुजारने की तलब बढ़ जाती है।

चाहता तो हूँ हर वक़्त तुम्हारे पास रहना,
लेकिन हर बात कहाँ सच हो पाती है।

वक़्त बेवक़्त तुम ख्यालों में आ जाती हो,
धीरे धीरे तुम्हारी जादूगरी समझ आती है।

इतने करीब से तो मैंने अपने आप को भी नहीं देखा,
जितना तुम्हारी खूबसूरती अपने पास ले जाती है।

देख लो कि कितना खुशनसीब हूँ मैं,
इतनी महोब्बत कहाँ किसी को मिल पाती है।

चेहरे का नक्शा ही बदल जाता है तुम्हारी तस्वीर देख कर,
मेरी मुस्कराहट जो दूर तक खिंची चली जाती है।

जानती हो कितनी बैचैनी रहती है मिलने की,
तुम्हारे साथ वाली याद तुम्हारे दरवाज़े तक ले आती है।

मौके की तलाश में रहता हूँ तुमसे मिलने की,
ज़िन्दगी, तेरा शुक्र गुज़ार हूँ, मिलने के इतने मौके देती है।

जाने क्या है तुम्हारी मिट्टी में,
तुम्हारी सुगंध मुझे काफी दूर से औऱ देर तक आती है।

कहा सोचा था की ऐसा रिश्ता बनेगा हमारा,
किसी रिश्ते को बिछड़न तो किसी को मिलाप ऐसा बनाती है।

कितना खुश हूँ मैं, क्या बताऊँ,
बस समझ लो कि तुमसे मिलते ही एक दूसरी दुनिया बन जाती है।

बता दो अब कब मिलना होगा,
तलब बढ़ती जाती है।

Saturday 3 February 2018

व्यंग्य: महा नगरपालिका - secret discussion

"Sir, कोई उपाय नहीं है।"

" सोच के बोल रहे हो या वोइच हर बार वाला जवाब है"

"अरे क्या sir, मैं ऐसे काम नहीं करता। सोचने का काम अपना थोड़ी है..हा हा!"

"तो किसका है..?"

"येईच तो मजेदार बात है sir जी..अपना काम है अक्खा पब्लिक को सुविधा देना..लेकिन पब्लिक को कुछ पड़ी नहीं है सुविधा लेने की..जो जैसा चल रहा है चलने दो..बहोत ही शरीफ है.. देखो कैसे लोकल में जानवरों की तरह मर पिट के जाती है कितने साल से फिर भी चु भी नही करती..अब वो शांत है तो हम क्यों फालतू में तकलीफ लें...पड़े रहेंगें जैसे है वैसे। हाँ, जब जरूरत पड़ती है तो अखबार में और सबसे मजेदार फेसबुक पे इतने suggestion मिल जाते है ना कि कई बार तो लगता है की मेरी पगार ये सब ही ले जाएंगे"

"हा हा हा हा.."

"ही ही ही ही.."

"जनता भी जोरदार चीज है"

"है ही sir जी वो तो..वो नहीं होती तो अपनी salary कहाँ से आती। बिना ज्यादा कुछ काम किये पगार मिल जाये, tension भी कुछ नहीं क्यों कि उसके लिए आप हो ही हमारे ऊपर, बस ज़िन्दगी में ओर क्या चाहिए। ये ग़ालिब, जगजीत सिंह यूँ ही परेशान रहे जिंदगी भर।"

"वैसे ग़ज़ल अच्छी गाता है जगजीत सिंह।... अरे, ग़ज़ल से याद आया ये बजट वजट कुछ पल्ले पड़ता है क्या यार तुम्हारे..हमे भी समझा दिया करो..तुम तो quota वाले भी नहीं हो तो समझ आता होगा न कुछ..।"

"अरे sir काहे शर्मिंदा करते हो..समझ आता तो हम आपकी कुर्सी पे नहीं बैठ जाते!"

"हाहाहाहा"

"हिहिहिहि"

"बहोत मज़ाक हो गया अब..वो सड़के सही करवा दो यार..वापिस न्यूज़ वालों ने पिछली साल की न्यूज़ कॉपी पेस्ट कर दी कि मानसून आने वाला है और अभी भी इतनी जगह गड्ढे भरने बाकी है.. इनको भी न ससुर काम नहीं है कुछ और..।"

"अरे sir काहे टेंशन ले रहे हो आप..हर बार छपता है कुछ उखड़ता थोड़ी है..अपने भी लास्ट बार वाला statement ढूंढ के कॉपी पेस्ट कर देते हैं ना..सड़के कौन सही करवाएगा..स्टेटमेंट कॉपी पेस्ट करके प्रेस release करदो..बस हो गया अगली साल तक का जुगाड़।"

"मुझे जवाब देना है ऊपर भी"

"हाहाहाहा..ये लाइन मस्त है.. सब काम ऊपर वाले के नाम पे या उसी के भरोसे पे ही होते हैं अपने तो। वैसे sir ऊपर वाले जवाब लेते तो गड्ढे खुद जाने वाली सड़के ही नही बनती ना..बन भी गयी तो वो गड्ढे हर साल नही खुदते..एक बार मे ही permanent काम हो जाता..।"

"अरे यार..तुम्हें इतना टाइम होगया डिपार्टमेंट में की तू मुझ जैसे नए लोगों को डरने भी नही देता..। चल तू बोल रहा है तो जाने देता हूँ..बाद में देखेंगे.. अभी तो अपना कार्यक्रम सेट करते हैं आज शाम का..कौनसी पीता है तू..।"

"जो मिल जाये sir..मेरा कोई ईमान धर्म नहीं है..।"

"हाहाहा..मेरा भी..।"



-आम आदमी, पीड़ित आदमी एवं राघव कल्याणी। 

नीचे दी हुई link भी खोल के देखलो एक बार..गड्ढे से बच के जाना link तक।

https://m.hindustantimes.com/mumbai-news/potholes-are-here-to-stay-as-mumbai-civic-body-is-yet-to-repair-1-645-roads/story-97Lwtc4sKrbsqfhuVrXcsL.html