Sunday, 15 April 2018
Two Things. Not For Rapists BUT FOR YOU.
Wednesday, 28 February 2018
"वो अब भी कहते हैं कि.."
वो अब भी कहते हैं कि हमने उनसे महोब्बत नहीं की,
कमबख्त कोई उन्हें मेरे दिल के हाल बताते ही नहीं।
वो अब भी कहते हैं कि हमने उनसे महोब्बत नहीं की,
जाने क्यों वो हमें समझते ही नहीं।
वो अब भी कहते हैं कि हमने उनसे महोब्बत नहीं की,
वो ऐसा समझते हैं तो अब हम उनको कुछ समझाते भी नहीं।
वो अब भी कहते हैं कि हमने उनसे महोब्बत नहीं की,
सोचता हूँ कि कहीं मेरी तरफ से कुछ कमी तो नहीं।
वो अब भी कहते हैं कि हमने उनसे महोब्बत नहीं की,
मतलब यह भी है कि अब किसी एक में वो बात ही नहीं।
Wednesday, 14 February 2018
मंत्रालय building : आत्महत्या और safety net
http://www.asianage.com/metros/mumbai/080218/suicide-attempts-embarrass-government.html
देशभक्त: हा हा हा हा!
Tuesday, 13 February 2018
तलब: घर और प्यार
जब ये दुनिया मुझे सताती है,
तुम्हारे साथ वक़्त गुजारने की तलब बढ़ जाती है।
चाहता तो हूँ हर वक़्त तुम्हारे पास रहना,
लेकिन हर बात कहाँ सच हो पाती है।
वक़्त बेवक़्त तुम ख्यालों में आ जाती हो,
धीरे धीरे तुम्हारी जादूगरी समझ आती है।
इतने करीब से तो मैंने अपने आप को भी नहीं देखा,
जितना तुम्हारी खूबसूरती अपने पास ले जाती है।
देख लो कि कितना खुशनसीब हूँ मैं,
इतनी महोब्बत कहाँ किसी को मिल पाती है।
चेहरे का नक्शा ही बदल जाता है तुम्हारी तस्वीर देख कर,
मेरी मुस्कराहट जो दूर तक खिंची चली जाती है।
जानती हो कितनी बैचैनी रहती है मिलने की,
तुम्हारे साथ वाली याद तुम्हारे दरवाज़े तक ले आती है।
मौके की तलाश में रहता हूँ तुमसे मिलने की,
ज़िन्दगी, तेरा शुक्र गुज़ार हूँ, मिलने के इतने मौके देती है।
जाने क्या है तुम्हारी मिट्टी में,
तुम्हारी सुगंध मुझे काफी दूर से औऱ देर तक आती है।
कहा सोचा था की ऐसा रिश्ता बनेगा हमारा,
किसी रिश्ते को बिछड़न तो किसी को मिलाप ऐसा बनाती है।
कितना खुश हूँ मैं, क्या बताऊँ,
बस समझ लो कि तुमसे मिलते ही एक दूसरी दुनिया बन जाती है।
बता दो अब कब मिलना होगा,
तलब बढ़ती जाती है।
Saturday, 3 February 2018
व्यंग्य: महा नगरपालिका - secret discussion
Wednesday, 20 December 2017
जिंदगी और प्यार : जो पता होता तो..
जो पता होता तो हम कमबख्त पास आने की ज़िद करते ही नहीं।
जो पता होता तो वो दगाबाज़ आवाज़ हम दिल से लगाते ही नहीं।
जो पता होता तो बिना सोचे छलांग लगते ही नहीं।
जो पता होता तो दागी चाँद को तुमसे कमतर बताते ही नहीं।
जो पता होता कि जिंदगी भूलभुलैया है, इतना सोचते ही नहीं।
जो पता होता तो रास्ते और यादें एक साथ बनाते ही नहीं।
जो पता होता तो शॉल को दिल से लगता ही नहीं।
जो पता होता इतनी मेहनत करते ही नहीं।
जो पता होता तो प्यार में भाग के आते ही नहीं।
जो पता होता तो ये पत्थर उठाते ही नहीं।
जो पता होता तो ऐसी नौबत लाते ही नहीं।
जो ये सब न होता, जिंदगी, जिंदगी कहलाती ही नहीं।
Monday, 11 December 2017
बाबा और पोती
मेरे गाँव मे एक बाबा हैं तकरीबन 75 साल के, जिन्हें मैं जानता हूँ उनकी पोती की नज़र से।
बाबा जो अपनी पोती को घर में सबसे ज्यादा प्यार करते
औऱ पोती, वो तो उन्हें अपना बेटा मानती ।
बाबा शरीर से कमजोर है।
लेकिन दिल उनका अब भी रिश्तों में मज़बूत है।
पोती ने बताया कि वो जब भी घर आते,
सब के लिए कुछ न कुछ लाते ही थे।
पोती को चॉक्लेट और किताबें पसंद थी,
सो बस, पेट के लिए और दिमाग़ के लिए कुछ खाने का लाते रहते थे।
गाँव में रहते थे,
बाकी कई खामियों की तरह,
बेहतर भविष्य के लिए दूर शहर जाना,
बड़े घर के लिए पापा, बाबा वाला घर छोड़ना पड़ता था।
मैंने सुना कि बाबा बहुत रोये थे उस दिन।
पोती से वायदा लिया की वो हर महीने आएगी औऱ खासकर उनकी आखिरी घड़ी में जरूर आएगी।
बाबा ने कई दिनों तक अपने बेटे से यानी पोती के पापा से बात नहीं की,
सिर्फ इसीलिए की पोती को बाहर क्यों भेजा पढ़ने के लिए।
वो गमगीन थे।
लेकिन हक़ीक़त तो स्वीकार करनी ही थी।
पोती के भविष्य के आगे बाबा का मोह हार गया।
और ये एक तरफा लड़ाई गाँव के हर घर में होती है।
कहीं माँ के हाथ की गरम गरम पूरियां हार जाती है कहीं बाबा की चॉक्लेट।
कितने खुश नसीब होते हैं ना शहर वाले।
पोती जब भी मौका लगता बाबा से मिलने आती।
अपनी सारी बातें बाबा को बताती।
मुझे शंका है कि इस उम्र में बाबा को सब सुनता समझता भी होगा,
लेकिन बाबा तो उसे देख कर ही बच्चे के जैसे खुश रहते,
जैसे कोई बच्चा कई दिनों बाद माँ को देख कर खुश होता है।
बाबा की तबियत अब बार बार बिगड़ने लगती है,
हालांकि ठीक हो जाते हैं कुछ दिनों में।
पोती को बुला लिया जाता है ऐसे नाज़ुक मौको पर।
वायदा निभाने के लिए।
या शायद बीमार बाबा की खतरनाक तरकीब हो पोती को देखने की।
या भगवान पोती की दुआओं को पूरा करता है लेकिन बाबा को कष्ट देकर।
थोड़े दिन पहले ही पोती के पढ़ाई के आखिरी इम्तिहान शुरू हुए हैं।
औऱ साथ ही बाबा की तबियत में तेज गिरावट भी।
दोनों एक दूसरे की स्थिति से बेखबर।
दोनों के लिए कितना मुश्किल है ये सब,
एक तरफ पोती की बौद्धिक परीक्षा और दूसरी तरफ बाबा के शरीर का परीक्षण।
दोनों ने ही मन ही मन वायदे किये होंगे कभी, एक दूसरे को हिम्मत देने की।
दोनों का मन एक दूसरे में रहता था लेकिन फिर भी मिलना कहाँ आसान होता था।
खुद के अच्छे भविष्य की चाहत भी तो कलियुगी मोह है।
और शायद स्वार्थ भी
जिसे व्यवहारिकता की आड़ में सही मानना पड़ता है।
कुछ दिनों से बाबा उम्मीद में हैं कि पोती आने वाली है।
उम्मीद पर कल कायम है, लेकिन कल किसने देखा है।
आज रात 8 बजे बाबा के शरीर ने परीक्षण में जवाब देना बंद कर दिया।
ऐसी परिक्षा की जवाब न दो तो मृत घोषित हो जाते हो।बाबा का भी नाम अब मृत शरीर कर दिया गया।
पोती अपना वायदा नहीं रख पाई।
पोती उनसे दूर अपने इम्तिहान की तैयारी कर रही है,
इन सबसे बेखबर।
इत्तला नही की गई उसे,
उसके इम्तिहान को अग्नि परीक्षा बनने से रोक लिया गया।
लेकिन बाबा के आखिरी वक्त के इम्तिहान में वो उपस्थित भी नहीं हो पाई।
सोचता हूं बाबा की आखिरी इच्छा क्या रही होगी।
उन्होंने अपनी पोती से जल्दी से मिलाने की इच्छा करी होगी,
या उन्होंने अपनी चॉक्लेटी दुलार की पहले ही हार मान ली होगी।
सोचता हूँ कि पोती पास होती तो क्या होता। क्या बाबा कुछ दिन औऱ जी लेते?
सोचता हूँ कि अब पोती क्या कहेगी, करेगी जब उसे बताया जाएगा सब कुछ,
उसके इम्तिहान के बाद।
सोचता हूँ घर वालो पर क्या बीत रही होगी जब पोती उन्हें दोषी ठहराएगी।
खुदा जाने। क्यो ऐसे हालात पैदा करता है वो!
पोती के लिए बाबा की बातें भूतकाल हो जाएंगी।
वो अब अपना बेटा खो चुकी है।