Saturday, 30 September 2017

एलफिंस्टन हादसा


आज 29 सितम्बर है और मेरा इंटरव्यू है,
नवरात्रि के हिसाब से मैने रंग पहना है,
जिंदगी का नया पन्ना शुरू करने की उमंग,
माँ का आशिर्वाद साथ में,
यही सोच के चल रही हूँ ।

रेलवे स्टेशन के लिए समय से निकली हूँ मैं घर से,
लेकिन मुंबई का ट्रैफिक कहाँ कुछ समझता है,
एम्बुलेंस को जगह नहीं देता,
मैं तो क्या ही चीज़ हूँ,
बस ट्रैफिक सह रही हूँ ।

स्टेशन पहुँच कर इतनी भीड़ देख पहले ही सहम गयी,
इतनी भीड़ में कही पहुंचना भी बड़ी बात है,
Ola uber लंबे रास्तो में अमीरों के खेल है,
सब लोकल से ही जाते हैं,
कोई नहीं, अब मैं भी चढ़ गयी हूँ ।

Indiabulls बिल्डिंग में मेरा इंटरव्यू है,
एल्फिंस्टन स्टेशन पर उतरना है,
इतनी तेज बारिश का इस महीने में आना आश्चर्य है ,
लेकिन कई बार आती है और कुछ परेशान भी करती है,


यही सोच कर लोकल ट्रेन के धक्के खा रही हूँ। 

एल्फिंस्टन स्टेशन पर उतर कर देखा तो
पाया कि ब्रिज पर भीड़ इकट्ठा है
जाने क्यों है, लेकिन फिर भी और लोग इक्कठे हो रहे है,
सबको जाना है काम पर, और मुझे भी,
मैं भी उसी भीड़ का हिस्सा हो गयी।

लेकिन यह क्या हुआ, यह शोरगुल इतना अचानक,
सब चिल्ला क्यों रहे है,
कोई बढ़ ही नहीं रहा आगे और पीछे से धक्के आ रहे है,
मेरे पास वाले सब चिल्ला रहे हैं।

और अचानक मेरे बगल वाला आदमी साँस न आने के कारण बेहाल हो गया,
पता नहीं उसे उस भीड़ में गिरा दिया गया या खुद गिर गया,
बहरहाल, कोई उसकी जिम्मेदारी लेने को तैयार नहीं है,
लेकिन हैरत है कि लोग उसके गिरने के बाद भी बढ़े ही जा रहे है।   
शायद वो किसी के पांव के नीचे आ गया होगा अब तो,
शायद बेहोश और अब तो मौत के करीब,
कुछ लोग चिल्लाये उसकी मदद के लिए,
जगह बनाने की कोशिश में कुछ और गिर गए शायद,
और यहाँ भगदड़ सी मच गई । 

ये क्या ! मैं भी गिर चुकी हूँ अब,
मुझे लोगों के जूते दिख रहे है,
लोग अपना सामान जो जगह रोके हुए था, फेंक रहे है,
मुझे गिरता हुआ सामान भी दिख रहा है,
मैं महसूस कर पा रही हूँ वो आवाजें
और लोगों का उपेक्षा करते हुए बढ़ना,
कोई मेरे मुँह पर पाँव रख रहा है तो कोई पाँव पर,
किसी को सुध नही है क्योंकि सबको खुद की जान बचानी है,
हवाईजहाज की कुर्सी की पेटी वाली घोषणा सबने ही सुनी हुई है, लग रहा है।

आह!! किसी ने मेरे पेट पर पाँव रखा और मैं चिल्ला पड़ी,
मेरे पास और भी लोग गिरे हुए हैं,
वो भी चिल्ला रहे हैं,
लेकिन अफसोस, अभी, आज सुनने वाला कोई भी नहीं है।

मुझे याद आया वो मम्मी का दही खिलाना,
पापा का आशिर्वाद देना,
लेकिन इस वक़्त लग रहा है कि कुछ काम नही आएगा,
मुझे ताकत चाहिए कि मैं खुद उठ सकूँ,
काश आज बारिश या भीड़ देख कर मैं रुक जाती थोड़ा और,
लेकिन इंटरव्यू वाले कितना ही समझते उस बात को।
आज आखिरी दिन शक्ति की माँ दुर्गा को भी याद किया,
लेकिन अब जरा भी ताक़त नहीं लग रही है,
चिल्लाते भागते लोग, और साँस का कुछ पता नहीं,
मेरे हाथों को दबाते हुए कोई आगे बढ़ गया,
अभी किसी ने मेरे गर्दन पर पाँव रख दिया,
मुझे बिल्कुल सांस नहीं आ रही है,
क्या इन लोगों के पाँवो को अहसास नहीं होगा कि वो किसके ऊपर हैं,
या शायद उन्हें निकलना है बस इसीलिए वो मुझे नज़रअंदाज़ कर रहे हैं।

समझ नहीं आ रहा किसको गाली दूँ,
इन लोगों को या खुद को,
इस मौसमी बारिश को,
ब्रिज बनाने वालों को,
ब्रिज को जरूरत के हिसाब से न बदलने वालों को,
या पूरे शासन तंत्र को,
आज तक मैंने ही कुछ नहीं किया देश के लिए,
बस यही सोच के मैं ज्यादा सोच नही पाई ।

आह! एक और पाँव मेरे पेट पर,
अब तो लग रहा है जैसे ताबूत में आखिरी कील की जरूरत रह गयी है बस,
कितना दुख भरा है ऐसी मौत का अनुभव,
मेरा चिल्लाना अब मुझे ही नहीं सुन रहा है,
कोई मदद कर भी नहीं सकता,
बस अब ऐसी घुटन नहीं सही जाती,
और ऊपर से ये मुझे जमीन समझते नासमझ लोग,
अँधेरा हो गया है आंखों में, लेकिन अभी तो सुबह ही थी,
हम्म! मेरा आखिरी वक्त आ गया है।

अब मैं साँस नही ले सकती,
मुझे मेरे ऊपर खड़े लोगों का भार भी महसूस नहीं हो रहा,
मैं अब निर्जीव हूँ।
मैं मर चुकी हूँ।
अब कोई दर्द नही होगा,
बस यही सोच कर खुश हूँ।

मैं अब आत्मा हूँ।
मैं अब आज़ाद हूँ।

अब आजाद मैं, देख पा रही हूँ कि कितने ही औऱ लोग दब चुके है,
कुछ चिल्ला रहे हैं औऱ कुछ मेरे शरीर की तरह निर्जीव हो गये है,
यह हृदय विदारक दृश्य, कौन रहा होगा इसका कारण;
खैर ये काम तो सबको आता है, अब सब कर ही लेंगे।

लोग इक्कठे हो चुके है ब्रिज के नीचे,
कोशिश कर रहे है मदद की, लेकिन व्यर्थ,
मदद की जगह ही नहीं है।
लोगों का चिल्लाना कम हुआ है और जिंदा लोगो की भीड़ कुछ मरे हुवे लोगों की भीड़ में बदल गयी है।
मैं भी इस नई भीड़ का हिस्सा हूँ।
अब केवल कुचले हुए लोग पड़े हैं।

वो वहाँ ऊपर मैं खुद को देख पा रही हूँ,
अच्छी लग रही थी सुबह आईने में तो,
अब तो सूरत ही नहीं पहचान पा रही हूँ।
हमें अलग इक्कठा किया जा रहा है,
जिंदा लोगों में से कुछ रो रहे हैं, कुछ चिल्ला रहे हैं,
किसी ने साथ वाले को खोया तो किसी ने खुद के शरीर को खोया,
नहीं, बस अब मैं और नहीं देख सकती।
अब मैंने इस संसार से मुँह मोड़ लिया है।

मैं सोच रही हूं अब क्या होगा,
कुछ खबरी आएंगे और चिल्लायेंगे,
कुछ मदद वाले आएंगे,
जाँच समितियाँ बिठाई जाएंगी,
5-10 लाख रुपये दिए जाएंगे,
शोक व्यक्त होगा,
नेता कुछ नाटक करेंगे,
और फिर भूला दिए जायेंगे,
इस हद तक कि कोई बड़ा जमीनी बदलाव नही होगा,
यही सब पुराने राम भरोसे ब्रिज,
और वही मानसिकता,
ना कोई कुछ सीखेगा, न बोलेगा,
किस्मत में लिखा था ये सोच के भुला दिए जाएंगे,
देखा है मैंने बहुत बार, ऐसा ही होता है,
सबक सीखते तो ऐसा होना बन्द हो गया होता,
यही चलता आया है यही चलता रहेगा,
बशर्ते जब तक हर घर से या कम से कम हर नेता के घर से ऐसे किसी एक की मौत न हो जाये।
उम्मीद नहीं कि तब तक कुछ होगा भी,
कोई कुछ करना भी चाहे तो उसे किसी का आधार नहीं मिलता,
बस यही भारत है,
मेरे हक़ीक़त का भारत,
चमकता हुआ भारत,
विश्वगुरु भारत,
जहाँ मेरे जैसे इन बीसियों लोगो की जिंदगी की कोई कीमत नहीं है,
और जो अभी यहाँ नहीं है आज, उनके लिए ये केवल हादसा है जो कि होता रहता है,
उम्मीद केवल उनसे है जो मेरे ऊपर पाँव रख कर गए थे जिंदा रहने के लिए और जो जिंदा बच गए ,
उम्मीद है वो कुछ बदलाव का बिगुल बजायेंगे।

सबकी आत्मा शरीर छोड़ के जा रही है,
आज उनको भी उम्मीद से ज्यादा अफसोस होगा,
अब उम्मीद पे उनकी दुनिया कायम नही रहीं।
21 जने और भी मरे है, ऐसे ही सैकड़ो और भी मरेंगे,
उम्मीद है तो किसी और देश में अगले जन्म की,
बस यही सोच कर मैं जा रही हूँ....। 

Monday, 18 September 2017

दुर्गा, आधी दुनिया और गालियाँ

क्यों?
आखिर क्यों?
क्यों सारी गालियों में केवल स्त्री की ही गरिमा को तार तार किया जाता है।

क्यों किसी की बुराई में उसकी माँ और बहन को बीच में लाया जाता है,
क्यों बातों ही बातों में तुम वो सब कर देते हो जिसके लिए तुम ही ने, हाँ तुम ही ने निर्भया candle march निकाला था।
तुमने ही उसकी निंदा फेसबुक पर की थी,
तुमने ही ऐसे इंसानो को सजा दिलवाने की मांग की थी।
लेकिन क्यों फिर आज तुम्हें फर्क नही पड़ता,
क्यों अपने ही दोस्त की बहन मां के साथ वही सब बातों में कर देते हो ।

एक ओर तुम माँ दुर्गा आदि शक्ति की आरती करते हो,
दूसरी ओर उसी नारी शक्ति को बातों से ही रौंद देते हो।
एक और अपनी माँ के लिए mothers day पर कविताएं लिखते हो,
ओर दूसरी तरफ दूसरों की माओं के साथ बातों में ही....।
एक और तुम women's day पर अच्छे अच्छे post paste करते हो, 
और दूसरी तरफ उन्हीं women की धज्जियाँ उड़ाते हो।
एक और अपनी बहन से राखी बंधवाते हो, सुरक्षा का वादा करते हो,
और दूसरे ही दिन तुम्हारा दोस्त तुम्हारी बहन के लिए कुछ भी कह जाता है और तुम हंस देते हो।

कैसे बेटे और भाई हो तुम..सोचो।

और तो और ये सब कोई और नहीं, तुम करते हो और दोस्त को करने देते हो। वाह।

क्यों तुम्हें शर्म नहीं आती..

शायद यह सोच कर की बोलने वाले का यह मतलब नहीं है।
तो फिर जब मतलब ही नहीं है तो कहना ही क्यों है।
और कुछ कहना ही है तो और भी बहुत शब्द है।

क्यों तुम्हें सामने वाले के सम्मान को ध्वस्त करने के लिए उसके बहन और माँ के सम्मान को कुचलना होता है।

ताज़्ज़ुब और मसखरा तो तब होता है
जब वो फेमिनिज्म की बातें करती है और दूसरी तरफ गालियां बकती है।
जब स्त्रीवाद (फेमिनिज्म) की बाते करने वालियाँ भी वही सब कहती है जिसके विरोध में अपनी दुकान चलाती है।
अपनी ही जाति के सम्मान को पैरों तले रौंद कर,
वो अपनी जाति की बराबरी की बाते करती है।
जो खुद अपनी आधी दुनिया के सम्मान की फिक्र नही रखते,
तो कोई और उस बारे में क्यों दिमाग लगाये।

गाली देना बिल्कुल भी cool नहीं है यार,
समझो कि किसी की इज़्ज़त को यूं तार तार करना cool हो ही नही सकता।

आधी दुनिया, जागो,
कब तक अपने ही तिरस्कार पर यूँ मौन बनी रहोगी,
और कब तक अपना ही तिरस्कार करती रहोगी।
ये तुम ही हो जो मिटा सकती हो इस बुराई को।

आज एक नहीं, हर नारी में शक्ति की जरूरत है।
शक्ति जो ऐसे अपमान करने वालों पर प्रहार कर सके,
शक्ति जो केवल मूर्तियों और किताबों से निकल कर हक़ीक़त में आये।
हे शक्ति, समझाओ अपने भाइयों को, कि किसी और की बहन की इज़्ज़त न उड़ाए।

यकीन रखो इसी तरह तुम्हरी गरिमा बनेगी जब कोई और बहन तुम्हारी सुरक्षा करेगी।
निर्भया के निर्भया बनने के बाद अफसोस करने से अच्छा अभी निर्भया बनो।

दुर्गा तुम्हारा ही एक रूप है।

Thursday, 10 August 2017

वक़्त तो लगता है

वो तेरा चेहरा,
जब देखा देखता ही रहा,
कई देर तक,
इतनी खूबसूरती को आंखों में समेटने के लिए
वक़्त तो लगता है।

वो ऐनक के पार तुम्हारी आंखे,
जिनसें तुम ये दुनिया देखती हो,
और मैं तुम्हारे अंदर देखने की कोशिश करता हूं,
आंखों में डूब कर वापिस आने में,
वक़्त तो लगता है।

वो तेरी प्यारी सी नाज़ुक नाक,
तुझे जिंदा रखे है,
और कितने जिन्दा है,
तुम्हे देखकर,
ये अंदाज़ा लगाने में,
वक़्त तो लगता है।

होठ तुम्हारे वो छोटे छोटे,
बिल्कुल धनुष के आकार के,
जब मिलते है एक दूजे से,
तीर निकलते जाते है,
उन तीरों से घायल होकर होश में आने में,
वक़्त तो लगता है।

तुम्हारी आवाज़,
सुनने को जिसकी खनक लोग तरसते है,
उस खनक से डगमगाये बिना,
तुम्हारी बात समझने की कोशिश करने में,
वक़्त तो लगता है।

वो घने काले बाल तुम्हारे,
कुछ एक दूसरे से उलझे हुए,
कुछ एक साथ इक्कठे होकर बंधे हुए,
कुछ एक तरफ गालों पर लटकते हुए,
सोच रहा हूँ कैसे इन बालों ने क्या जादू किया है,
काले बालों के जादू को समझने में,
वक़्त तो लगता है।

वो कोमल मुलायम मखमली नाज़ुक तुम्हारे हाथ,
किसी को छू ले तो घायल कर दे,
मेरे हाथों को उनसे मुलाकात करनी है,
हाथो को अपनी चाहत बयाँ करने में,
वक़्त तो लगता है।

वो तुम्हारी उंगलियां,
जब बालो की लट से खेलती है,
उस खेल में मैं अपना दिल हार जाता हूं,
इस खिलाड़ी की चाल समझने में,
वक़्त तो लगता है।

तुम्हारे ख्यालात,
एक बार आ जाते हैं तो बस जाते हैं
उन्हें दिमाग से निकाल कर,
कहीं और दिल लगाने में,
वक़्त तो लगता है।

मुस्कुराहटें तुम्हारी,
देख के हर कोई खुशनसीब समझे खुदको,
ऐसी मुस्कराहटों पे,
जान निसार करने में,
अब वक़्त नही लगता है।

-राघव कल्याणी

Sunday, 30 April 2017

परी, आनंद और अब्दुल

कल कुछ अलग मन हुआ,
सोचा जन्मदिन कुछ बच्चो के साथ मनाते है,
बच्चे भी कुछ खास,
कुछ HIV से बीमार और कुछ अनाथ।

सबके साथ कुछ वक्त बिताया,
कुछ मस्ती कुछ नचाया,
फिर सबको खाना परोसा,
सब खाना खा रहे थे,
कुछ धीरे, कुछ जल्दी,
कुछ को चावल पसंद नही थे,
किसी को खीर ज्यादा ही पसंद थी।
हम कोशिश कर रहे थे कि
जिसको जो चाहिए वो उसे तुरंत दे दें,

तभी एक आवाज़ आई,
देखा तो वो छोटी परी रो रही थी,
मेरे कुछ साथी दौड़ के उसके पास गए,
और पूछने लगे उसके रोने की वजह,
खाना अच्छा नहीं लगा या कुछ और चाहिए,
कुछ बड़े बच्चे उसकी रोते हुए की तरफ देख रहे थे,
कुछ बच्चे अभी भी अपने खाने में मग्न थे-
-शायद ये उनके दिन में से एक अच्छा वक्त होता है।
वो अच्छी थी, एक चॉक्लेट में खुश होगयी।

मैं वही खड़ा था,
सबको देखने समझने की कोशिश में शायद,
लेकिन कुछ ऐसा भी होता है इस दुनिया में,
जो देखने समझने के बाद भी हम अनदेखा नसमझा करना बेहतर समझते है,
देखा कि उन बच्चो में एक बच्चा गर्दन झुकाये खा रहा था,
और बार बार अपनी कलाई से अपने गालों को साफ कर रहा था।
अरे, ये तो वही है जो सबसे अच्छा नाच रहा था- आनंद।

समझ आया कि वो चुपचाप रो रहा था।
उसे भी खाना अच्छा नहीं लगा या
अपने घर के पुराने दिन याद आगये।
सोचा कि खाना पसंद नापसंद आना इन बच्चो के लिए कोई सवाल ही नहीं था।
सब इतनी किस्मत वाले कहाँ होते है।
पुराने दिन ही याद आये होंगें।

अपनी जानलेवा बीमारी पता लगने से पहले के दिन,
जब मां और कभी कभी पापा के साथ बैठ कर खाना खाया करता था।
और आज उन दिनों की याद आ गयी होगी अचानक,
खीर देख कर शायद।
मुझे भी आ रही थी।

एक पल ख्याल आया कि उसको जा के पूछूँ
क्या हुआ कुछ चाहिए वगैरा,
लेकिन हिम्मत नही हुई
पांव ही नही हिले ये सोच कर की,
उसने यदि बोल दिया की-
- घर जाना है,
तो मैं क्या कहूँगा!
यदि उसने कह दिया कि
उसे मम्मी के हाथ से ही खाना है
तो मैं क्या करूँगा!
नहीं, मैं उसे पूछ कर और परेशान नहीं कर सकता,
और उसका जवाब सुनकर मैं भी
अपनी मज़बूरी पर और परेशान नहीं होना चाहता,

इससे अच्छा है कि मन में ही उन दिनों को याद करके आंसू निकाल ले,
किसे पता है, उसका कारण जान कर कुछ और बच्चो का खाना मुश्किल हो जाये!
वो चॉक्लेट से नहीं मान सकता था,
इसलिए अपनी मज़बूरी का फायदा उठा कर
मैंने उसको अनदेखा नसमझा कर दिया।

परी को भी शायद कुछ याद आया होगा,
नहीं, उसको तो याद भी नही होगा
कि इससे पहले उसकी एक ज़िन्दगी और थी।
या ये भी हो सकता है कि,
आधे से ज्यादा बार उसे,
घर या घर वालो की बजाय,
चॉक्लेट ने ही खुश किया होगा,
चॉक्लेट से उसका रिश्ता ज्यादा था बजाय घर से!

ये सब सोच कर देख कर मुड़ा
कुछ और बच्चो को देखने
एक और छोटा बच्चा, अब्दुल,
खाने के बीच मे झपकियां ले रहा था,
वो मासूम चेहरा, झपकियों के साथ और भी कई गुना मासूम होगया था,
दिल पिघल जाता है कुछ नज़ारे देख कर,
इस बार मेरे पांव टिक नहीं पाए,
और उसे खिलाने उसकी तरफ चला गया।

चावल में थोड़ी सी पड़ी दाल सूख गयी थी,
कैसे खा सकेगा वो इसको,
लेकिन उनको सिखाया भी किसने होगा,
कि कितने चावल में कितनी दाल लेते है,
खीर थी तो वो खाने को राजी हो गया,
लेकिन उसे भी किशमिश पसंद नही थी खीर में-
ठीक मेरी तरह,
मेरे घर में तो सबको पता था
लेकिन अब्दुल के बारे में यहाँ,
किसी को पता भी होगा?

आओ कुछ करते है इन बच्चो के लिए,
जो आप अपने बच्चो के लिए करते है,
उसका एक छोटा सा टुकड़ा।
जिंदगी सबके साथ एक जैसी नहीं होती,
किसी को पलकों पर बिठा कर रखती है
तो किसी को पाँव में भी नहीं बिठाती!
जिंदगी है; मौत के जैसे इसके सामने भी
सबकी कहाँ चलती है!

Saturday, 25 March 2017

कैसे!!

कैसे हाँ कर दूँ मैं
की अब तुझसे दूर रहना है,
क्या ये मुमकिन भी होगा,
जब बात जिंदगी भर की आएगी तो?
शायद होगा भी,
लेकिन कुछ बाते मुझे नामुमकिन ही अच्छी लगती है।

कैसे भुला दूँ वो अफ़साने
जो हमने लिखे थे
एक साथ, एक दूसरे पर,
उस दिन, उस जगह पर
उम्मीद है वो अफ़साने वापिस लिखेंगे;
और भी ज्यादा जुनून ' शिद्दत के साथ।

कैसे नज़रअंदाज कर दूँ वो पल,
जिनमे तुम याद आती हो,
वो चंद लम्हो के पल,
कभी भी कहीं भी याद आ जाते है,
और तुम्हारी याद आते ही वो पल भी,
जेहन में खास हो जाते है।

कैसे शुक्रिया अदा करूँ तुम्हारी दरियादिली का,
हर बार माफ़ किये देती हो;
और मैं गंवार सा,
फिर फिर दोहराता हूँ गलतियां;
और वापस माफ़ी के बाद सोचता हूं,
क्या कभी चूका भी पाउँगा ये अहसान ।

कैसे निभाऊं वो किये हुए वादे,
इस दुरी के बीच में रहते हुए,
दुरी जो मैंने ही पैदा की है,
मिटाना चाहता हूँ मैं इसे,
मुश्किल है सब कुछ आगे,
लेकिन कुछ वादे अब निभाने है।

Sunday, 5 March 2017

An Appy day

Hey,

Just have a look if this is the day you had some day and you even didn't realise. Our life is Appy now..Don't know about Happy. I guess the difference of 'H' stands for Human-touch.

I woke up by mobile alarm and while bathing listened Jio music app. I got ready. Took auto and paid by paytm app. I booked my mumbai local train ticket by UTS app. Checked train schedule on M-Indicator app. Read answers on Quora app, music on Jio, You tube, whatsapp, CaClubIndia app etc. Reached bandra. Booked ticket on bookmyshow app. Paid through mobiqwik app that converted my payback points in 565 rupees and got 100 cash back too. Located theater venue using Google map app. Checked in on Facebook and posted on instagram. Came back to station from theater through Ola app booking and with Ola money. Used earlier booked local train ticket. Used Riddler app for booking ticket on BEST bus to reach home and paid through free Riddler points received. Whatsapp Vedio called my friend. Wrote this on evernote after Ordering pizza through dominos app. Checked my steps on Google fit app. Made plan of next weekend with help of Haptik app. ReFilled my e wallets with icici i-mobile app. Felt cold and having no medicine, ordered on Pharmeasy. Finally thinking to post on blogger app.

I wish I could charge some fees to them for advertising them. :P

Cheers!

Monday, 20 February 2017

Techniques for CA Exams and other exams

While answering on Quora for a similiar question, I felt that all answer given there by experts should be shared widely for CA aspirants help and hence I wrote, edited and compiled them.
My sincere request to other CAs/experts, if you can suggest other methods, that would be great for all of us.
To start with, I would say: Number of revisions are directly proportional to success at CA exams. The more revision you do, the more chances are you will see “PASS” on your result day.
Now, use following techniques while studying:
  1. Fix a day of a week when you will revise all what you have studied in last six days. This is very much helpful technique and helps a lot in retaining things. The most important one.
  2. Follow limited and good books/sources according to your own wiring: Don’t go for Surbhi Bansal/Bhandari Handbooks if you can’t elaborate things correctly. Find what all are saying/following and then get the best which suits you and not others. Suno sabki, karo khud ki.
  3. Discipline: You don’t have any other option than to study regularly. Once in 15 days if your mood is not to study, it's perfectly fine. But don’t let that happen every fifth day. Be strict to your self as that’s going to pay back you maximum.
  4. I believe, CA exams are also testing our attitude. Attitude to how you respond/react to hard subjects/topics or to tough/lengthy first paper and that how you make yourself feel while being under hammer for 4 months and specially last 15 days continuously. Be positive no matter what. Keep yourself motivated. I used to have motivational audios in my phone.
  5. Time management: Manage your time that you have in your hand. If you are on 6–7 month leave and if your friend is on 3–4 month leave, both being average student, I will bet for your friend. More leaves may mean longer requirement of discipline and self control/strictness. I personally feel leave of 4-4.5 months is pretty sufficient if you have taken half of the classes. e.g. I cleared in my second attempt with 2.5 months leave when I didn't take even full classes till first attempt leaves.
  6. Further, how you manage subjects is also important. Giving equal weight (Your comfort on subject on scale*time) to each subject.
  7. Hard and smart work of course.
  8. While studying, keep making a plan in mind that how you are going to revise this topic day before exam. Make short notes on bookpage itself and read them while revising.
  9. Studying 2-3 subjects daily breaking monotonous way.  
  10. Not leaving a single topic untouched. Strictly. Don't believe ICAI if it has not given any question from a topic in last 5 years and hence if you think this topic will not be asked in exam. Probability is question will come in your attempt.
  11. Going through complete RTP and practice manual.
  12. If you feel like, I am there to help.
More edits/suggestions may follow. Share if you think it helps others.
All the best!!

Answer originally given here https://www.quora.com/For-CA-final-can-you-suggest-the-best-study-plan-Read-details/answer/Raghav-Kalyani?srid=bwiw&share=27cac37c.