Wednesday, 14 February 2018

मंत्रालय building : आत्महत्या और safety net



http://www.asianage.com/metros/mumbai/080218/suicide-attempts-embarrass-government.html

देशभक्त: हा हा हा हा!

आम आदमी: अरे भाई क्यों हंस रहे हो अचानक?!

देशभक्त: अपने मंत्री लोगो ने क्या काम किया है, पता है? अच्छा तुम्हें क्या पता होगा, तुम्हें क्या करना है कि समाज में क्या हो रहा है। तुम्हारी गाड़ी ठीक से चल रही है बस। बाकी भाड़ में जाये भले।

आम आदमी: हाँ भई, नही पता हमें। ऐसे फालतू की टेंशन नही लेता मैं। होना तो वही है जो मंत्रियों को ठीक लगेगा। लेकिन किया क्या है उन्होंने ऐसा जो तुम ठहाका लगा कि हंस रहे हो!

देशभक्त: उन्होंने indirectly बोला है कि तुम्हें मरना है तो भले मर जाओ लेकिन मंत्रालय की building में मरने आओगे तो अब मौत भी नसीब नही होगी। इसका मतलब ये की जिंदगी सुधर जाने की तो उम्मीद वैसे भी नही थी किसी को वहाँ जाने पर..अब आप वहाँ मर भी नहीं सकते।

आम आदमी: नहीं समझा।

देशभक्त: मंत्रालय की building में 2-3 लोगों ने आत्महत्या करली। किसी ने जमीन के बेतुके सरकारी मुआवजे को लेकर तो किसी ने बर्बाद फसल को लेकर। मतलब कोई सरकार की समझ से दुखी था तो कोई भगवान के गुस्से से और सरकार के निट्ठल्ले पन से। तो अब उन्होंने मंत्रालय की building में जाकर आत्महत्या करली। जैसे भगत सिंह ने अंग्रेज़ो की नाक के नीचे बम फोड़े थे, वैसे ही अब लोगों को मंत्रियों की आंखों के आगे जान देनी पड़ रही है कि माई बाप, अब तो सुन लो । ...हा हा हा हा!

आम आदमी: अरे उनकी आत्महत्या पर हंस रहे हो!?

देशभक्त: नहीं, आगे जो बताने वाला था उसपे हंसी आगयी। तो सरकार ने सोचा कि ये समस्यायें तो हम हल कर नहीं पाएंगे, तो लोगों को मरने की favourite जगह कम कर देते हैं। तो उन्होंने मंत्रालय में safety net बांध दिए। बोल रहे हैं कि अब यहाँ मर के दिखाओ।

आम आदमी: हा हा हा। मतलब काम तो करेंगे तब करेंगे, तुम यहाँ मरना बंद करो। लगता है पूरे शहर में safety net बांधने वाले हैं फिर तो।

देशभक्त: नहीं रे बबुआ। इन्हें तो बस ये डर है कि मंत्रालय की building में मरेंगे तो भूत बनके उन्हें ही ना सताए। बाकी भले मरते रहो कहीं भी।

आम आदमी: मतलब मंत्रालय पहले लोग समस्या निपटाने जाते थे उम्मीद के साथ। अब उम्मीद खत्म हो रही है तो खुद को निपटाने जा रहे है।

देशभक्त: ज्यादा बोल रहा है भाई तू। सरकार काम कर रही है। ज्यादा मत बोल।

आम आदमी: सॉरी भाई। मेरी local ट्रेन आगयी। मैं तैयार हो जाता हूँ जानवर बनने के लिए।



Tuesday, 13 February 2018

तलब: घर और प्यार

जब ये दुनिया मुझे सताती है,
तुम्हारे साथ वक़्त गुजारने की तलब बढ़ जाती है।

चाहता तो हूँ हर वक़्त तुम्हारे पास रहना,
लेकिन हर बात कहाँ सच हो पाती है।

वक़्त बेवक़्त तुम ख्यालों में आ जाती हो,
धीरे धीरे तुम्हारी जादूगरी समझ आती है।

इतने करीब से तो मैंने अपने आप को भी नहीं देखा,
जितना तुम्हारी खूबसूरती अपने पास ले जाती है।

देख लो कि कितना खुशनसीब हूँ मैं,
इतनी महोब्बत कहाँ किसी को मिल पाती है।

चेहरे का नक्शा ही बदल जाता है तुम्हारी तस्वीर देख कर,
मेरी मुस्कराहट जो दूर तक खिंची चली जाती है।

जानती हो कितनी बैचैनी रहती है मिलने की,
तुम्हारे साथ वाली याद तुम्हारे दरवाज़े तक ले आती है।

मौके की तलाश में रहता हूँ तुमसे मिलने की,
ज़िन्दगी, तेरा शुक्र गुज़ार हूँ, मिलने के इतने मौके देती है।

जाने क्या है तुम्हारी मिट्टी में,
तुम्हारी सुगंध मुझे काफी दूर से औऱ देर तक आती है।

कहा सोचा था की ऐसा रिश्ता बनेगा हमारा,
किसी रिश्ते को बिछड़न तो किसी को मिलाप ऐसा बनाती है।

कितना खुश हूँ मैं, क्या बताऊँ,
बस समझ लो कि तुमसे मिलते ही एक दूसरी दुनिया बन जाती है।

बता दो अब कब मिलना होगा,
तलब बढ़ती जाती है।

Saturday, 3 February 2018

व्यंग्य: महा नगरपालिका - secret discussion

"Sir, कोई उपाय नहीं है।"

" सोच के बोल रहे हो या वोइच हर बार वाला जवाब है"

"अरे क्या sir, मैं ऐसे काम नहीं करता। सोचने का काम अपना थोड़ी है..हा हा!"

"तो किसका है..?"

"येईच तो मजेदार बात है sir जी..अपना काम है अक्खा पब्लिक को सुविधा देना..लेकिन पब्लिक को कुछ पड़ी नहीं है सुविधा लेने की..जो जैसा चल रहा है चलने दो..बहोत ही शरीफ है.. देखो कैसे लोकल में जानवरों की तरह मर पिट के जाती है कितने साल से फिर भी चु भी नही करती..अब वो शांत है तो हम क्यों फालतू में तकलीफ लें...पड़े रहेंगें जैसे है वैसे। हाँ, जब जरूरत पड़ती है तो अखबार में और सबसे मजेदार फेसबुक पे इतने suggestion मिल जाते है ना कि कई बार तो लगता है की मेरी पगार ये सब ही ले जाएंगे"

"हा हा हा हा.."

"ही ही ही ही.."

"जनता भी जोरदार चीज है"

"है ही sir जी वो तो..वो नहीं होती तो अपनी salary कहाँ से आती। बिना ज्यादा कुछ काम किये पगार मिल जाये, tension भी कुछ नहीं क्यों कि उसके लिए आप हो ही हमारे ऊपर, बस ज़िन्दगी में ओर क्या चाहिए। ये ग़ालिब, जगजीत सिंह यूँ ही परेशान रहे जिंदगी भर।"

"वैसे ग़ज़ल अच्छी गाता है जगजीत सिंह।... अरे, ग़ज़ल से याद आया ये बजट वजट कुछ पल्ले पड़ता है क्या यार तुम्हारे..हमे भी समझा दिया करो..तुम तो quota वाले भी नहीं हो तो समझ आता होगा न कुछ..।"

"अरे sir काहे शर्मिंदा करते हो..समझ आता तो हम आपकी कुर्सी पे नहीं बैठ जाते!"

"हाहाहाहा"

"हिहिहिहि"

"बहोत मज़ाक हो गया अब..वो सड़के सही करवा दो यार..वापिस न्यूज़ वालों ने पिछली साल की न्यूज़ कॉपी पेस्ट कर दी कि मानसून आने वाला है और अभी भी इतनी जगह गड्ढे भरने बाकी है.. इनको भी न ससुर काम नहीं है कुछ और..।"

"अरे sir काहे टेंशन ले रहे हो आप..हर बार छपता है कुछ उखड़ता थोड़ी है..अपने भी लास्ट बार वाला statement ढूंढ के कॉपी पेस्ट कर देते हैं ना..सड़के कौन सही करवाएगा..स्टेटमेंट कॉपी पेस्ट करके प्रेस release करदो..बस हो गया अगली साल तक का जुगाड़।"

"मुझे जवाब देना है ऊपर भी"

"हाहाहाहा..ये लाइन मस्त है.. सब काम ऊपर वाले के नाम पे या उसी के भरोसे पे ही होते हैं अपने तो। वैसे sir ऊपर वाले जवाब लेते तो गड्ढे खुद जाने वाली सड़के ही नही बनती ना..बन भी गयी तो वो गड्ढे हर साल नही खुदते..एक बार मे ही permanent काम हो जाता..।"

"अरे यार..तुम्हें इतना टाइम होगया डिपार्टमेंट में की तू मुझ जैसे नए लोगों को डरने भी नही देता..। चल तू बोल रहा है तो जाने देता हूँ..बाद में देखेंगे.. अभी तो अपना कार्यक्रम सेट करते हैं आज शाम का..कौनसी पीता है तू..।"

"जो मिल जाये sir..मेरा कोई ईमान धर्म नहीं है..।"

"हाहाहा..मेरा भी..।"



-आम आदमी, पीड़ित आदमी एवं राघव कल्याणी। 

नीचे दी हुई link भी खोल के देखलो एक बार..गड्ढे से बच के जाना link तक।

https://m.hindustantimes.com/mumbai-news/potholes-are-here-to-stay-as-mumbai-civic-body-is-yet-to-repair-1-645-roads/story-97Lwtc4sKrbsqfhuVrXcsL.html

Wednesday, 20 December 2017

जिंदगी और प्यार : जो पता होता तो..

दूर जाना इतना भी आसां नही है जितना सोचा था,
जो पता होता तो हम कमबख्त पास आने की ज़िद करते ही नहीं।

कैसे एक आवाज़ इरादों को कमजोर करने की कोशिश करती है,
जो पता होता तो वो दगाबाज़ आवाज़ हम दिल से लगाते ही नहीं।

ये आग का दरिया इतना लंबा है,
जो पता होता तो बिना सोचे छलांग लगते ही नहीं।

कैसे चाँद को देख कर खो जाते है कभी कभी,
जो पता होता तो दागी चाँद को तुमसे कमतर बताते ही नहीं।

जो हो रहा है, सोचा था उससे कितना अलग हो रहा है,
जो पता होता तो अपने भविष्य में तुम्हें रखते ही नहीं।

इतना सोचते रहे लेकिन कुछ और ही होता रहे,
जो पता होता कि जिंदगी भूलभुलैया है, इतना सोचते ही नहीं।

इस रास्ते से गुजरते हैं तो तुम्हारी याद आती है,
जो पता होता तो रास्ते और यादें एक साथ बनाते ही नहीं।

ठंड में वो शॉल याद आ जाती है जिसने मुझे बचाया था,
जो पता होता तो शॉल को दिल से लगता ही नहीं।

ना शरीर खुश है ना मन खुश है,
जो पता होता इतनी मेहनत करते ही नहीं।

मिलने आने के बाद और भी मुश्किल हो गया अब तो,
जो पता होता तो प्यार में भाग के आते ही नहीं।

इश्क़ का पत्थर भी कभी अपने ही नीचे हमे दबा देगा,
जो पता होता तो ये पत्थर उठाते ही नहीं।

पता चला कि खुद को रोकना इतना मुश्किल है,
जो पता होता तो ऐसी नौबत लाते ही नहीं।

अब जो हुआ सो हुआ, जिंदगी निभानी ही है,
जो ये सब न होता, जिंदगी, जिंदगी कहलाती ही नहीं।

-राघव कल्याणी

Monday, 11 December 2017

बाबा और पोती

मेरे गाँव मे एक बाबा हैं तकरीबन 75 साल के, जिन्हें मैं जानता हूँ उनकी पोती की नज़र से।

बाबा जो अपनी पोती को घर में सबसे ज्यादा प्यार करते
औऱ पोती, वो तो उन्हें अपना बेटा मानती ।

बाबा शरीर से कमजोर है।
लेकिन दिल उनका अब भी रिश्तों में मज़बूत है।
पोती ने बताया कि वो जब भी घर आते,
सब के लिए कुछ न कुछ लाते ही थे।
पोती को चॉक्लेट और किताबें पसंद थी,
सो बस, पेट के लिए और दिमाग़ के लिए कुछ खाने का लाते रहते थे।

गाँव में रहते थे,
बाकी कई खामियों की तरह,
बेहतर भविष्य के लिए दूर शहर जाना,
बड़े घर के लिए पापा, बाबा वाला घर छोड़ना पड़ता था।

मैंने सुना कि बाबा बहुत रोये थे उस दिन।
पोती से वायदा लिया की वो हर महीने आएगी औऱ खासकर उनकी आखिरी घड़ी में जरूर आएगी।
बाबा ने कई दिनों तक अपने बेटे से यानी पोती के पापा से बात नहीं की,
सिर्फ इसीलिए की पोती को बाहर क्यों भेजा पढ़ने के लिए।

वो गमगीन थे।
लेकिन हक़ीक़त तो स्वीकार करनी ही थी।
पोती के भविष्य के आगे बाबा का मोह हार गया।
और ये एक तरफा लड़ाई गाँव के हर घर में होती है।
कहीं माँ के हाथ की गरम गरम पूरियां हार जाती है कहीं बाबा की चॉक्लेट।
कितने खुश नसीब होते हैं ना शहर वाले।

पोती जब भी मौका लगता बाबा से मिलने आती।
अपनी सारी बातें बाबा को बताती।
मुझे शंका है कि इस उम्र में बाबा को सब सुनता समझता भी होगा,
लेकिन बाबा तो उसे देख कर ही बच्चे के जैसे खुश रहते,
जैसे कोई बच्चा कई दिनों बाद माँ को देख कर खुश होता है।

बाबा की तबियत अब बार बार बिगड़ने लगती है,
हालांकि ठीक हो जाते हैं कुछ दिनों में।
पोती को बुला लिया जाता है ऐसे नाज़ुक मौको पर।
वायदा निभाने के लिए।
या शायद बीमार बाबा की खतरनाक तरकीब हो पोती को देखने की।
या भगवान पोती की दुआओं को पूरा करता है लेकिन बाबा को कष्ट देकर।

थोड़े दिन पहले ही पोती के पढ़ाई के आखिरी इम्तिहान शुरू हुए हैं।
औऱ साथ ही बाबा की तबियत में तेज गिरावट भी।
दोनों एक दूसरे की स्थिति से बेखबर।

दोनों के लिए कितना मुश्किल है ये सब,
एक तरफ पोती की बौद्धिक परीक्षा और दूसरी तरफ बाबा के शरीर का परीक्षण।
दोनों ने ही मन ही मन वायदे किये होंगे कभी, एक दूसरे को हिम्मत देने की।
दोनों का मन एक दूसरे में रहता था लेकिन फिर भी मिलना कहाँ आसान होता था।
खुद के अच्छे भविष्य की चाहत भी तो कलियुगी मोह है।
और शायद स्वार्थ भी
जिसे व्यवहारिकता की आड़ में सही मानना पड़ता है।

कुछ दिनों से बाबा उम्मीद में हैं कि पोती आने वाली है।
उम्मीद पर कल कायम है, लेकिन कल किसने देखा है।
आज रात 8 बजे बाबा के शरीर ने परीक्षण में जवाब देना बंद कर दिया।
ऐसी परिक्षा की जवाब न दो तो मृत घोषित हो जाते हो।बाबा का भी नाम अब मृत शरीर कर दिया गया।
पोती अपना वायदा नहीं रख पाई।
पोती उनसे दूर अपने इम्तिहान की तैयारी कर रही है,
इन सबसे बेखबर।
इत्तला नही की गई उसे,
उसके इम्तिहान को अग्नि परीक्षा बनने से रोक लिया गया।
लेकिन बाबा के आखिरी वक्त के इम्तिहान में वो उपस्थित भी नहीं हो पाई।

सोचता हूं बाबा की आखिरी इच्छा क्या रही होगी।
उन्होंने अपनी पोती से जल्दी से मिलाने की इच्छा करी होगी,
या उन्होंने अपनी चॉक्लेटी दुलार की पहले ही हार मान ली होगी।

सोचता हूँ कि पोती पास होती तो क्या होता। क्या बाबा कुछ दिन औऱ जी लेते?
सोचता हूँ कि अब पोती क्या कहेगी, करेगी जब उसे बताया जाएगा सब कुछ,
उसके इम्तिहान के बाद।
सोचता हूँ घर वालो पर क्या बीत रही होगी जब पोती उन्हें दोषी ठहराएगी।
खुदा जाने। क्यो ऐसे हालात पैदा करता है वो!

पोती के लिए बाबा की बातें भूतकाल हो जाएंगी।
वो अब अपना बेटा खो चुकी है।

Saturday, 30 September 2017

एलफिंस्टन हादसा


आज 29 सितम्बर है और मेरा इंटरव्यू है,
नवरात्रि के हिसाब से मैने रंग पहना है,
जिंदगी का नया पन्ना शुरू करने की उमंग,
माँ का आशिर्वाद साथ में,
यही सोच के चल रही हूँ ।

रेलवे स्टेशन के लिए समय से निकली हूँ मैं घर से,
लेकिन मुंबई का ट्रैफिक कहाँ कुछ समझता है,
एम्बुलेंस को जगह नहीं देता,
मैं तो क्या ही चीज़ हूँ,
बस ट्रैफिक सह रही हूँ ।

स्टेशन पहुँच कर इतनी भीड़ देख पहले ही सहम गयी,
इतनी भीड़ में कही पहुंचना भी बड़ी बात है,
Ola uber लंबे रास्तो में अमीरों के खेल है,
सब लोकल से ही जाते हैं,
कोई नहीं, अब मैं भी चढ़ गयी हूँ ।

Indiabulls बिल्डिंग में मेरा इंटरव्यू है,
एल्फिंस्टन स्टेशन पर उतरना है,
इतनी तेज बारिश का इस महीने में आना आश्चर्य है ,
लेकिन कई बार आती है और कुछ परेशान भी करती है,


यही सोच कर लोकल ट्रेन के धक्के खा रही हूँ। 

एल्फिंस्टन स्टेशन पर उतर कर देखा तो
पाया कि ब्रिज पर भीड़ इकट्ठा है
जाने क्यों है, लेकिन फिर भी और लोग इक्कठे हो रहे है,
सबको जाना है काम पर, और मुझे भी,
मैं भी उसी भीड़ का हिस्सा हो गयी।

लेकिन यह क्या हुआ, यह शोरगुल इतना अचानक,
सब चिल्ला क्यों रहे है,
कोई बढ़ ही नहीं रहा आगे और पीछे से धक्के आ रहे है,
मेरे पास वाले सब चिल्ला रहे हैं।

और अचानक मेरे बगल वाला आदमी साँस न आने के कारण बेहाल हो गया,
पता नहीं उसे उस भीड़ में गिरा दिया गया या खुद गिर गया,
बहरहाल, कोई उसकी जिम्मेदारी लेने को तैयार नहीं है,
लेकिन हैरत है कि लोग उसके गिरने के बाद भी बढ़े ही जा रहे है।   
शायद वो किसी के पांव के नीचे आ गया होगा अब तो,
शायद बेहोश और अब तो मौत के करीब,
कुछ लोग चिल्लाये उसकी मदद के लिए,
जगह बनाने की कोशिश में कुछ और गिर गए शायद,
और यहाँ भगदड़ सी मच गई । 

ये क्या ! मैं भी गिर चुकी हूँ अब,
मुझे लोगों के जूते दिख रहे है,
लोग अपना सामान जो जगह रोके हुए था, फेंक रहे है,
मुझे गिरता हुआ सामान भी दिख रहा है,
मैं महसूस कर पा रही हूँ वो आवाजें
और लोगों का उपेक्षा करते हुए बढ़ना,
कोई मेरे मुँह पर पाँव रख रहा है तो कोई पाँव पर,
किसी को सुध नही है क्योंकि सबको खुद की जान बचानी है,
हवाईजहाज की कुर्सी की पेटी वाली घोषणा सबने ही सुनी हुई है, लग रहा है।

आह!! किसी ने मेरे पेट पर पाँव रखा और मैं चिल्ला पड़ी,
मेरे पास और भी लोग गिरे हुए हैं,
वो भी चिल्ला रहे हैं,
लेकिन अफसोस, अभी, आज सुनने वाला कोई भी नहीं है।

मुझे याद आया वो मम्मी का दही खिलाना,
पापा का आशिर्वाद देना,
लेकिन इस वक़्त लग रहा है कि कुछ काम नही आएगा,
मुझे ताकत चाहिए कि मैं खुद उठ सकूँ,
काश आज बारिश या भीड़ देख कर मैं रुक जाती थोड़ा और,
लेकिन इंटरव्यू वाले कितना ही समझते उस बात को।
आज आखिरी दिन शक्ति की माँ दुर्गा को भी याद किया,
लेकिन अब जरा भी ताक़त नहीं लग रही है,
चिल्लाते भागते लोग, और साँस का कुछ पता नहीं,
मेरे हाथों को दबाते हुए कोई आगे बढ़ गया,
अभी किसी ने मेरे गर्दन पर पाँव रख दिया,
मुझे बिल्कुल सांस नहीं आ रही है,
क्या इन लोगों के पाँवो को अहसास नहीं होगा कि वो किसके ऊपर हैं,
या शायद उन्हें निकलना है बस इसीलिए वो मुझे नज़रअंदाज़ कर रहे हैं।

समझ नहीं आ रहा किसको गाली दूँ,
इन लोगों को या खुद को,
इस मौसमी बारिश को,
ब्रिज बनाने वालों को,
ब्रिज को जरूरत के हिसाब से न बदलने वालों को,
या पूरे शासन तंत्र को,
आज तक मैंने ही कुछ नहीं किया देश के लिए,
बस यही सोच के मैं ज्यादा सोच नही पाई ।

आह! एक और पाँव मेरे पेट पर,
अब तो लग रहा है जैसे ताबूत में आखिरी कील की जरूरत रह गयी है बस,
कितना दुख भरा है ऐसी मौत का अनुभव,
मेरा चिल्लाना अब मुझे ही नहीं सुन रहा है,
कोई मदद कर भी नहीं सकता,
बस अब ऐसी घुटन नहीं सही जाती,
और ऊपर से ये मुझे जमीन समझते नासमझ लोग,
अँधेरा हो गया है आंखों में, लेकिन अभी तो सुबह ही थी,
हम्म! मेरा आखिरी वक्त आ गया है।

अब मैं साँस नही ले सकती,
मुझे मेरे ऊपर खड़े लोगों का भार भी महसूस नहीं हो रहा,
मैं अब निर्जीव हूँ।
मैं मर चुकी हूँ।
अब कोई दर्द नही होगा,
बस यही सोच कर खुश हूँ।

मैं अब आत्मा हूँ।
मैं अब आज़ाद हूँ।

अब आजाद मैं, देख पा रही हूँ कि कितने ही औऱ लोग दब चुके है,
कुछ चिल्ला रहे हैं औऱ कुछ मेरे शरीर की तरह निर्जीव हो गये है,
यह हृदय विदारक दृश्य, कौन रहा होगा इसका कारण;
खैर ये काम तो सबको आता है, अब सब कर ही लेंगे।

लोग इक्कठे हो चुके है ब्रिज के नीचे,
कोशिश कर रहे है मदद की, लेकिन व्यर्थ,
मदद की जगह ही नहीं है।
लोगों का चिल्लाना कम हुआ है और जिंदा लोगो की भीड़ कुछ मरे हुवे लोगों की भीड़ में बदल गयी है।
मैं भी इस नई भीड़ का हिस्सा हूँ।
अब केवल कुचले हुए लोग पड़े हैं।

वो वहाँ ऊपर मैं खुद को देख पा रही हूँ,
अच्छी लग रही थी सुबह आईने में तो,
अब तो सूरत ही नहीं पहचान पा रही हूँ।
हमें अलग इक्कठा किया जा रहा है,
जिंदा लोगों में से कुछ रो रहे हैं, कुछ चिल्ला रहे हैं,
किसी ने साथ वाले को खोया तो किसी ने खुद के शरीर को खोया,
नहीं, बस अब मैं और नहीं देख सकती।
अब मैंने इस संसार से मुँह मोड़ लिया है।

मैं सोच रही हूं अब क्या होगा,
कुछ खबरी आएंगे और चिल्लायेंगे,
कुछ मदद वाले आएंगे,
जाँच समितियाँ बिठाई जाएंगी,
5-10 लाख रुपये दिए जाएंगे,
शोक व्यक्त होगा,
नेता कुछ नाटक करेंगे,
और फिर भूला दिए जायेंगे,
इस हद तक कि कोई बड़ा जमीनी बदलाव नही होगा,
यही सब पुराने राम भरोसे ब्रिज,
और वही मानसिकता,
ना कोई कुछ सीखेगा, न बोलेगा,
किस्मत में लिखा था ये सोच के भुला दिए जाएंगे,
देखा है मैंने बहुत बार, ऐसा ही होता है,
सबक सीखते तो ऐसा होना बन्द हो गया होता,
यही चलता आया है यही चलता रहेगा,
बशर्ते जब तक हर घर से या कम से कम हर नेता के घर से ऐसे किसी एक की मौत न हो जाये।
उम्मीद नहीं कि तब तक कुछ होगा भी,
कोई कुछ करना भी चाहे तो उसे किसी का आधार नहीं मिलता,
बस यही भारत है,
मेरे हक़ीक़त का भारत,
चमकता हुआ भारत,
विश्वगुरु भारत,
जहाँ मेरे जैसे इन बीसियों लोगो की जिंदगी की कोई कीमत नहीं है,
और जो अभी यहाँ नहीं है आज, उनके लिए ये केवल हादसा है जो कि होता रहता है,
उम्मीद केवल उनसे है जो मेरे ऊपर पाँव रख कर गए थे जिंदा रहने के लिए और जो जिंदा बच गए ,
उम्मीद है वो कुछ बदलाव का बिगुल बजायेंगे।

सबकी आत्मा शरीर छोड़ के जा रही है,
आज उनको भी उम्मीद से ज्यादा अफसोस होगा,
अब उम्मीद पे उनकी दुनिया कायम नही रहीं।
21 जने और भी मरे है, ऐसे ही सैकड़ो और भी मरेंगे,
उम्मीद है तो किसी और देश में अगले जन्म की,
बस यही सोच कर मैं जा रही हूँ....। 

Monday, 18 September 2017

दुर्गा, आधी दुनिया और गालियाँ

क्यों?
आखिर क्यों?
क्यों सारी गालियों में केवल स्त्री की ही गरिमा को तार तार किया जाता है।

क्यों किसी की बुराई में उसकी माँ और बहन को बीच में लाया जाता है,
क्यों बातों ही बातों में तुम वो सब कर देते हो जिसके लिए तुम ही ने, हाँ तुम ही ने निर्भया candle march निकाला था।
तुमने ही उसकी निंदा फेसबुक पर की थी,
तुमने ही ऐसे इंसानो को सजा दिलवाने की मांग की थी।
लेकिन क्यों फिर आज तुम्हें फर्क नही पड़ता,
क्यों अपने ही दोस्त की बहन मां के साथ वही सब बातों में कर देते हो ।

एक ओर तुम माँ दुर्गा आदि शक्ति की आरती करते हो,
दूसरी ओर उसी नारी शक्ति को बातों से ही रौंद देते हो।
एक और अपनी माँ के लिए mothers day पर कविताएं लिखते हो,
ओर दूसरी तरफ दूसरों की माओं के साथ बातों में ही....।
एक और तुम women's day पर अच्छे अच्छे post paste करते हो, 
और दूसरी तरफ उन्हीं women की धज्जियाँ उड़ाते हो।
एक और अपनी बहन से राखी बंधवाते हो, सुरक्षा का वादा करते हो,
और दूसरे ही दिन तुम्हारा दोस्त तुम्हारी बहन के लिए कुछ भी कह जाता है और तुम हंस देते हो।

कैसे बेटे और भाई हो तुम..सोचो।

और तो और ये सब कोई और नहीं, तुम करते हो और दोस्त को करने देते हो। वाह।

क्यों तुम्हें शर्म नहीं आती..

शायद यह सोच कर की बोलने वाले का यह मतलब नहीं है।
तो फिर जब मतलब ही नहीं है तो कहना ही क्यों है।
और कुछ कहना ही है तो और भी बहुत शब्द है।

क्यों तुम्हें सामने वाले के सम्मान को ध्वस्त करने के लिए उसके बहन और माँ के सम्मान को कुचलना होता है।

ताज़्ज़ुब और मसखरा तो तब होता है
जब वो फेमिनिज्म की बातें करती है और दूसरी तरफ गालियां बकती है।
जब स्त्रीवाद (फेमिनिज्म) की बाते करने वालियाँ भी वही सब कहती है जिसके विरोध में अपनी दुकान चलाती है।
अपनी ही जाति के सम्मान को पैरों तले रौंद कर,
वो अपनी जाति की बराबरी की बाते करती है।
जो खुद अपनी आधी दुनिया के सम्मान की फिक्र नही रखते,
तो कोई और उस बारे में क्यों दिमाग लगाये।

गाली देना बिल्कुल भी cool नहीं है यार,
समझो कि किसी की इज़्ज़त को यूं तार तार करना cool हो ही नही सकता।

आधी दुनिया, जागो,
कब तक अपने ही तिरस्कार पर यूँ मौन बनी रहोगी,
और कब तक अपना ही तिरस्कार करती रहोगी।
ये तुम ही हो जो मिटा सकती हो इस बुराई को।

आज एक नहीं, हर नारी में शक्ति की जरूरत है।
शक्ति जो ऐसे अपमान करने वालों पर प्रहार कर सके,
शक्ति जो केवल मूर्तियों और किताबों से निकल कर हक़ीक़त में आये।
हे शक्ति, समझाओ अपने भाइयों को, कि किसी और की बहन की इज़्ज़त न उड़ाए।

यकीन रखो इसी तरह तुम्हरी गरिमा बनेगी जब कोई और बहन तुम्हारी सुरक्षा करेगी।
निर्भया के निर्भया बनने के बाद अफसोस करने से अच्छा अभी निर्भया बनो।

दुर्गा तुम्हारा ही एक रूप है।