Congratulations if you wanted him to win. I too wanted him to win and he won. This makes me happy.
Thursday, 23 May 2019
Modiji aa gye hai❣️But will our strategy be right for our children's future?
Congratulations if you wanted him to win. I too wanted him to win and he won. This makes me happy.
Wednesday, 22 May 2019
Politics and Economics: Why you - did not vote or should not have voted?
There are multiple reasons about why not to vote. What they can be? Let's find out through Economics and general sense:
Monday, 20 May 2019
Your Chartered Friend-Part 1 : What exactly to do with your monthly salary?
Fair enough given existing educational system. But never mind, your Chartered friend is at your help.
This amount is the amount you have to keep in your saving bank account (if credit card is there, even then approximately 75% of the amount, because you are gonna need it next month).
Investment should mean monthly installment of your SIP, ELSS/ULIP etc. This part of percentage also covers your health insurance and term insurance premium which you have to pay annually. You may (or may not, up-to you) put average monthly amount in flexible bank recurring deposit. (Don't worry, will explain many more such terms/topics in upcoming blogs).
Monday, 29 April 2019
My funny vote story and Goddess of Democracy
Sunday, 7 April 2019
सर्वभूतेषु शक्ति-रूपेण संस्थिता! - कहानी निकिता ढौंडियाल की।
हे मां, कोटि प्रणाम है तुझे तेरे बेटे की तरफ से।
हालांकि अब मेरी बात उस तक नहीं पहुंच सकती लेकिन हां निकिता, तुमसे बेइंतेहा प्यार है मुझे, लेकिन देश से प्यार के लिए बेइंतेहा शब्द छोटा है। माफ़ करना मैंने तुमसे ये झूठ बोला लेकिन विश्वास है कि यह माफी के काबिल है।
ये तुम्हारा प्यार ही तो है जिसने ताकत दी है, तुमने जो सहायता दी है, जो समझदारी दिखाई है तभी मुझे देश के लिए जान देने से पहले कुछ सोचना नहीं पड़ा। मेरी कुर्बानी से ज्यादा में तुम्हारी कुर्बानी को देखकर गौरव महसूस करता हूं।
और तुमने मुझे कर्तव्य से विमुख नहीं होने दिया कभी। मैं हमेशा तुम्हारे पास ही हूं। देखो ना अभी भी तुम्हारे पास हूं। तुम मुझे सुन नहीं पा रही हो। काश, ये संवाद एक तरफा ना होके दोनों तरफ से हो पाता। अगली दफा जब मिलेंगे तब जरूर ये सब मैं तुम्हें बताऊंगा।
जय हिन्द। जय हिन्द। जय हिन्द।"
धन्य हूं मैं निकिता। जो तुम्हारे जैसी पत्नी मिली है। जो शहादत पर आंसू ना बहा कर जोश बढ़ा रही है। मां को भी तुम पर गर्व होगा। तुमने उनके बेटे की शहादत को अपनी वीरता से और भी सुहाना कर दिया है। दुनिया मुझे सलाम कर रही है लेकिन मेरा सलाम तुझे है।
जय हिन्द! जय हिन्द! जय हिन्द!
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विस्तृत:
https://youtu.be/SWkAWjbZsfk
https://youtu.be/cUKKU8RJAaI
Sunday, 31 March 2019
Breaking Stereotype
When I reached home after the 24hr journey, I found the renovation process of home going on as was told to me on phone. Different was the fact that the whole renovation plan and progress was supervised by my mother. Not father, not grandfather but my mother with help of my grandmother. Wow! I praised her in my thoughts. This is cool! Have seen man doing this work wherever I got to see but here it's different. #Proud.
Anyway, I with my grand parents took off to the function and set in a Govt bus. To my next surprise, once the bus departed, conductor for collecting fare was female. She was easily talking to all kind of passengers and with authority, collecting fare. Super cool! Isn't it? Never thought so. Even in Mumbai, conductor/master is a male at least what I have seen. Thought that Rajasthan has left Mumbai behind in this case in the symbol of equality. And add to it that our fare was given by Grandmother which was usually done by me or Grandfather. Well! Seems breaking stereotype is #betterTogether and you need a little push and support from each other.
Things didn't stop just here. The function we were going to attend was a love marriage with family consent. What broke stereotype was the fact that all arrangements were done by Groom and Bridegroom only. Not the parents but son and daughter. Couple with their friends made it happen anyhow and arranged everything themselves. That means bridegroom's girl-friends were also taking care of guests. Everyone seemed to be Breaking Stereotype. Age and gendor wise. #Wow.
After the function, I also went to my paternal uncle's home with Grandparents. Now this time uncle was the one who broke stereotype. He prepared all dishes and served as well. Aunty was there but she was requested specially to stay in room and talk to us. 90% of the kitchen things were done and managed by uncle. Stereotype broken by both Uncle and Aunt. #Great.
One more thing that I noticed in my comparatively conservative hometown this time. There were daughter in place of son; Wife in place of husband, at some Kirana stores. Man! That's really a kind of progress in thoughts of my hometown. Specially the Agarwal/Maheshwari-Baniya community who have always led the society in terms of upgrading social values and thoughts. #Respect.
From leading renovation at home to collecting fare, from managing a marriage to managing kitchen and shops. Great experience.
I was feeling like what has happened suddenly. I am finding break of stereotypes anywhere I could think little deep. And it was not stereotyped example of breaking stereotype such as big posts like lady Doctor or lady police officer.
Don't think that, things done by a lady or someone 30+ only breaks stereotype. Even you can break it simply by taking the role of sweeper for a minute. Even by celebrating your birthday with orphan kids. Even by helping your house maid or mother/wife regularly at home.
It is the change at right place. At small place and in small terms. Because someone said that take care of small things and bigger things will take care of themselves. Because small is beautiful. Because small makes you great. Because its #BetterTogether.
Thursday, 14 March 2019
सेहत और मर्ज
जो सेहत में इतनी दूर आते नहीं थे,
चलो, अब वो मिलने आएंगे।
बीमारी में बात की उसने,
चलो, अच्छा है, इसी में खुश हो जाएंगे।
सेहत कहां आराम देती है शरीर को,
चलो, अब दो पल सुकून के मिल जाएंगे।
कई महीने हुए, पड़ोसी नहीं दिखे,
चलो, अब दफ्तर जाते दिख जाएंगे।
सेहत तो पढ़ने नहीं देती साहिब,
चलो, अब उस किताब के पन्ने पढ़े जाएंगे।
बहुत दिन हुए, घर की दीवारों से गुफ्तगू नहीं हुई,
चलो, अब इत्मीनान से कुछ बतियाते जाएंगे।
घर दीवार के उस कोने में रोगन की जरुरत है,
चलो, अब सब दरारों के दीदार हो जाएंगे।
भागते भागते खाना ही नसीब होता था,
चलो, अब दो बार नाश्ते हो जाएंगे।
ख्वाइश थी कुछ शायरी सुनने की,
चलो अब सब शायर सुने जाएंगे।
अरसे से मन की बातें ना निकली थी,
चलो अब सारे शिकवे मिटते जाएंगे।
काफी वक्त से टैगोर की कहानियां देखनी थी,
चलो अब सब खंगाले जाएंगे।
हर शाम, घर की शाम याद आती थी,
चलो, अब बच्चों को आवाज़ से हम बहल जाएंगे।
उम्दा लिखना था कुछ,
चलो, अब कुछ फसाने लिखे जाएंगे।
मर्ज ही तो है, लग जाने दो,
दुरुस्त होना ही है, हो जाएंगे।
फिर भी, बेहद ख्याल रखिए खुद का,
एक बार चले गए तो वापिस नहीं आ पाएंगे।
Sunday, 10 March 2019
गुरु महिमा री माला
उक्त रचना को हाल ही में श्री कमल पोद्दार के सानिध्य में श्री मनोज छापरवाल द्वारा सुरीले संगीत से सजाया गया।
उसे सुनने के लिए यहां जाएं:
गुरु और गोविन्द री, रासि एक समान।
गुरु बणायो ज्ञान दे, गोविन्द नै भगवान। १।
गुरु गौरव महिमा घणी, किस बिद करूँ बखाण।
गुरु आगै नत माथ हो, आप खड़्या भगवान। २।
माटी नै पुजवाय दे, कुम्भकार रो ज्ञान।
कण सुमेर पर्वत बने, गुरु री क्रिपा महान। ३।
नर से नारायण बने, बामन बने विराट।
कण नै मण रो रूप दे, गुरु क्रिपा रा ठाठ। ४।
गुरु हिड़दे रो च्यानणौ, गुरु आंख्या री जोत।
गुरु सिमरण सूं सिद्ध सब, कारज पहली पोत। ५।
गुरु श्रद्धा रो देवरो, गुरु शान्ति रो कुंज।
गुरु शिष्यां री ढाल है, गुरु प्रकाश रो पुंज। ६।
गुरु रो मतलब शिखर है, गुरु गौरव री खान।
गुरु श्रद्धालु ही बण्या, जग में पुरुष महान। ७।
पत्थर सूं मूरत गढ़े, जियां मुरतकार।
सद्गुण दे सद्गुरु करै, शिष्यां रो सिणगार। ८।
भारत भूमि पर रयो, गुरु तत्व परधान।
गुरु कृपा सादर मिल्यो, जगतगुरू सम्मान। ९।
गुण गौरव गुरु देव रा, चौतरफो आनन्द।
गुरु कृपा से टूटज्या, जलम जलम रो फंद। १०।
गुरु रा साचा सबद सुण, हिवड़ै उठै हिलोर।
परमानन्द में मगन हो, नाचै मन रौ मोर। ११।
गुरु भगती राखी हिये, मन में गुरु रो ध्यान।
एकलव्य री साधना, पायो जग में मान। १२।
जै थे रस्तै चालस्यो, मन में गुरु रो ध्यान।
थारा कारज सिद्ध सब, करसी श्री भगवान। १३।
गुरु तत्व रो मोल है, सुणल्यो सब संसार।
औतारां नै भी पड़ी, गुरुवर री दरकार। १४।
रामकृष्ण गुरुदेव तो, शिष्य विवेकानंद।
जग भगत चमकाइयो, ज्यूँ तारा बिच चंद। १५।
मिल्यो ज्ञान गुरु री कृपा, होग्यो भ्रम रो नाश।
दयानन्द स्वामी हुआ, मेट्या अन्ध विश्वास। १६।
Sunday, 17 February 2019
(मज़ाकिया) आदमी !
ए. सी. में बैठा आदमी।
पसीने वाला मजदूर आदमी।
लोकल में चढा आदमी।
मुंबई में नौकरीपेशा आदमी।
शहरों के कामगार आदमी।
निठल्ला ज्ञानी आदमी।
कॉलेज के जवान आदमी।
नई नई शादी वाला आदमी।
बीवी से डरा आदमी।
भोला भोला पति आदमी।
महागठबंधन का आदमी।
मोदी विपक्ष में बैठा आदमी।
मोदी, राहुल सरीखे आदमी।
आज भारत का आम आदमी।
आदमी!
पूर्वाग्रह से ग्रस्त आदमी।
विश्वास रखने वाला आदमी।
गलत-फहमियों का शिकार आदमी।
किसी के इश्क़ में डूबा आदमी।
जिंदगी में धोखा खाया आदमी।
सत्य पर चलने वाला आदमी।
झूठ बोलने वाला आदमी।
मेहनत करने वाला आदमी।
भाग्य भरोसे आदमी।
आदमी से लड़ता आदमी।
आदमी से त्रस्त आदमी।
Thursday, 7 February 2019
दोस्त की शादी वाली कविता
लो, दो पल ठहर के देखो ज़रा,
तुम्हारा अच्छा वक्त आया है।
जब तुम दो पल ठहरोगी,
एक पल में बीते कल में भी झांकना।
जो हासिल किया, जो खोया,
जो मिला, जो पा न सकीं।
जो हासिल किया, जो मिला,
सदा तुम्हारे साथ रहेगा।
जो खोया, जो पा ना सकीं,
वो तुमसे दूर भी नहीं है।
वहीं कहीं तो हम भी नज़र आएंगे तुम्हें,
वहीं मिलेंगे तुमसे,
उस एक पल में,
आखिरी बार अपनी हैसियत से ऊपर।
उसके बाद हम, वहां ना रहेंगे।
वक़्त है, किस्मत है,
तुम हो, सारा जहां है।
दोनों की मर्ज़ी है,
की तुम्हें यहां खड़ा किया है।
इनके सामने किसकी चलती है,
बस यही बात है जो माननी है।
जब तुम दो पल ठहरोगी,
एक पल आने वाले कल में झांकना।
हासिल को खोना नहीं है,
जो पा न सकी वो लेना है।
वहां भी नज़र आएंगे हम तुम्हें कहीं तो,
वहीं मिलेंगे वापिस,
ऐसे हर एक पल में,
हमेशा अपनी हैसियत से ऊपर,
तुम्हारी मदद को तैयार।
वक़्त है, किस्मत है,
तुम हो, सारा जहां है।
तुम्हारी मर्ज़ी है,
तुम्हें कहां जाना है।
सपने देखो, हासिल करो,
मेहनत से वक़्त और किस्मत भी बदलते हैं।
बस यही बात है जो माननी है।
नए वक्त के उत्साह में,
दो पल ठहर के हमें भी याद करती रहना।
इस हसीं शाम के लिए, नई सुबह के लिए,
उस वक़्त और किस्मत को शुक्रिया कहना।
Wednesday, 6 February 2019
क्योंकि इतना कमजोर तो तुझसे इश्क़ भी नहीं!
तेरी खूबसूरती के लिए मैं एक शायरी लिख दूं,
लेकिन इतनी कलाकार तो मेरी कलम भी नहीं।
तेरी रूहानी मुस्कराहट को कागज पे उकेरूं,
लेकिन इतना काबिल तो कोई कागज भी नहीं।
तेरी खिलखिलाहट को गाने में पिरो दूं,
लेकिन इतनी मुकम्मल तो कोई धुन भी नहीं।
तेरी मासूमियत को मंच पे पेश करूं,
लेकिन इतनी पाकीज़ा तो ज़मीन भी नहीं।
तेरी अदाओं को नृत्य में ढालू,
लेकिन इतना प्यारा तो कोई ढंग भी नहीं।
तेरे हुस्न जैसी कलाकृति बना दुं,
लेकिन इतना दिलकश तो कोई सामान भी नहीं।
कैसे बयां करूं तेरी कशिश,
इतना हसीं कला का कोई रंग भी नहीं।
सोचता हूं जैसी हो, खुदा के जैसे एक ही हो,
फिर भी इतनी खालिस तो मेरी इबादत भी नहीं।
करता रहूंगा कोशिश तुझे बयां करने की, हारुंगा नहीं,
क्योंकि इतना कमजोर तो तुझसे इश्क़ भी नहीं।
Wednesday, 9 January 2019
तुम्हारी तस्वीर!
अभी अभी मैनें तुम्हारी तस्वीर देखी,
लगा कि बस जन्नत देख ली हो जैसे।
रुक गया मैं कुछ पल के लिए,
ठहर कर इबादत करते हो जैसे।
झुकी झुकी सी नजर, हया आंखो में,
देख के मुझे, तूने इकरार किया है जैसे।
मुस्कराहट तुम्हारी इतनी खालिस,
देख के इसको, खोट खुद भागे जैसे।
वो लट जो तुम्हारे गाल को छू रही है,
मेरी ही कोई ख्वाहिश पूरी कर रही हो जैसे।
चेहरा तेरा इतना हंसी,
दुनिया भूल कर तुझे ही देखता रहूं जैसे।
इतनी खूबसूरत कैसे हो तुम,
चांद भी देख के शरमा जाए जैसे।
तेरी नीली पोशाक, चेहरे की रंगत,
आसमान में चांद निकल आया हो जैसे।
काला धागा बांध रखा है तुमने,
नज़रों से घायल करने वाली को भला नज़र लगती हो जैसे।
हसीन कारीगरी है, ग़ज़ल हो तुम,
और मैं वो ग़ज़ल गुनगुना रहा जैसे।